Cannes 2024: पहली बार, तीस सालों में कोई भारतीय फिल्म 'All We Imagine As Light' Palme d'Or की दौड़ में
bhargav moparthi
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मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।

13 टिप्पणि

  1. Archana Sharma Archana Sharma
    मई 24, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    वाह! पायल दी की फिल्म ने फिर से साबित किया कि हम भारतीय फि‍ल्‍म मेकर्स में कितना टैलेंट है 😊 बढ़ियाा काम! इस जीत से नयी पीढ़ी को बहुत मोटीवेशन मिलेगा 😄

  2. Vasumathi S Vasumathi S
    मई 30, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    यह उपलब्धि केवल एक व्यक्तिगत सफलताप्राप्ति नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमाई परम्परा के एक दार्शनिक परिवर्तन का संकेत है। फिल्म की विषयवस्तु, जो नारी के आत्म-अन्वेषण को उजागर करती है, गहराई से विचार को प्रेरित करती है। इस प्रकार की प्रस्तुति वैश्विक मंच पर भारत की सांस्कृतिक धरोहर को नई रोशनी में प्रस्तुत करती है।

  3. Anant Pratap Singh Chauhan Anant Pratap Singh Chauhan
    जून 5, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    हमें सबको इस फिल्म से बहुत कुछ सीखने को मिला। प्रब्बा और अनु की कहानी सच्ची है। इसने हमें फ़िल्म में महिलाओं की आवाज़ को सुनने की जरूरत दिखायी।

  4. Shailesh Jha Shailesh Jha
    जून 11, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    देखो, इस फ़िल्म ने न केवल कल्टर्ड नरेटिव को डिसरप्ट किया बल्कि इंडस्ट्री में जेंडर बायस को भी क्वांटिफ़ाई किया। यह एक एक्सेलेंट केस स्टडी है कि कैसे स्ट्रैटेजिक स्टोरीटेलिंग मैटर करती है। ऐसे प्रोजेक्ट्स को स्केल करना चाहिए, वरना बायस प्लेज़र बनेगा। अगर हर प्रोड्यूसर इसे अपनाए तो इंडस्ट्री में एक इन्फ्लुएंसियल शिफ्ट आएगा।

  5. harsh srivastava harsh srivastava
    जून 17, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    इतनी एनी रिलीज़ को सपोर्ट करना बहुत ज़रूरी है ये फिल्म नयी पीढ़ी को गाइड कर सकती है बेसिक रेफरेंसेस को समझा कर ये काम करेगी

  6. Praveen Sharma Praveen Sharma
    जून 23, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    फिल्म की नारी शक्ति वाली कहानी दिल को छू गई। इस तरह की सराहना हमें और समझ देती है कि किस तरह से कहानी में सादगी रखी जा सकती है। आगे भी ऐसे प्रोजेक्ट्स को फॉलो करना चाहिए।

  7. deepak pal deepak pal
    जून 29, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    कूल फ़िल्‍म 🙌 देखी, वाक़ई में मोमेंट्स बहुत एम्ब्रेसिंग थे 😎
    अगली बार भी ऐसे ही फील चाहिए।

  8. KRISHAN PAL YADAV KRISHAN PAL YADAV
    जुलाई 5, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    इस प्रोजेक्ट ने मल्टी‑डायमेंशनल नेरेटिव मॉडल को एन्हांस किया है, जिससे कंटेंट स्ट्रेटेजी में एक्सपोज़र मैक्सिमाइज़ होता है। बायोफिलिक रिस्पॉन्स को टॅप करके एक एंगेजिंग यूज़र जर्नी बनती है। यदि हम इस फ्रेमवर्क को एडेप्ट करें तो फ़िल्मी इकोसिस्टम में ROI भी अपस्केल होगा।

  9. ಹರೀಶ್ ಗೌಡ ಗುಬ್ಬಿ ಹರೀಶ್ ಗೌಡ ಗುಬ್ಬಿ
    जुलाई 11, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    बिलकुल भी नया कुछ नहीं दिखा इस फ़िल्म ने, बस वही पुराने ट्रॉप्स दोहराए गए हैं। अगर सच्ची इनोवेशन चाहिए तो कुछ डिफ़रेंट ट्राइ करना पड़ेगा।

  10. chandu ravi chandu ravi
    जुलाई 17, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    सुपर बambo 🌟

  11. Neeraj Tewari Neeraj Tewari
    जुलाई 23, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    पायल कपाड़िया की फ़िल्म ने हमारे सिनेमा के अभिज्ञान को पुनः परिभाषित किया है। यह केवल एक कहानी नहीं, बल्कि आत्म-निरीक्षण का एक गहरा प्रतिबिंब है। प्रब्बा और अनु के पात्रों के माध्यम से हम देख पाते हैं कि पहचान की यात्रा कितनी जटिल और सुंदर होती है। इस फिल्म में नारी के संघर्षों को एक नई द्रष्टि से प्रस्तुत किया गया है, जिससे दर्शक उनके आंतरिक दुनियाओं में प्रवेश कर पाते हैं। प्रत्येक सिनेमाटोग्राफ़िक फ्रेम में मुंबई की रात्रियों का जीवंत रंग दिखाया गया है, जो न केवल दृश्य का आनंद देता है बल्कि भावनात्मक स्तर पर गहराई भी प्रदान करता है।
    निर्देशन में प्रयुक्त माइक्रो‑इंफ़्लक्स तकनीक ने पात्रों के भावों को सूक्ष्मता से उजागर किया है, जो दर्शकों को कहानी में पूरी तरह डूबो देता है। इस पहल ने भारतीय फ़िल्म निर्माण में तकनीकी नवाचार के द्वार खुले हैं।
    फिल्म का संगीत, जो स्थानीय ध्वनियों और वैश्विक स्कोर का मिश्रण है, दर्शकों की इंद्रियों को मंत्रमुग्ध कर देता है। इस संयोजन ने न केवल कथा को सुदृढ़ किया बल्कि सांस्कृतिक पहचान को भी प्रतिबिंबित किया।
    समालोचनात्मक दृष्टि से देखें तो यह फिल्म हमें मानवीय संबंधों के जटिल परस्पर क्रिया को समझने का अवसर देती है। यह न केवल नारी सशक्तिकरण की बात करती है, बल्कि सामाजिक मानदंडों के परे जाकर व्यक्तिगत स्वायत्तता की खोज को भी प्रस्तुत करती है।
    अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस प्रकार की कृतियों का मान्यता प्राप्त होना, भारतीय सिनेमा के भविष्य के लिए एक नई दिशा दर्शाता है। इस सफलता से अन्य महिला निर्देशक भी प्रेरित होंगे, जिससे विविध कथा रूपों का विकास होगा।
    फ़िल्म के अंत में, जब प्रब्बा और अनु की आत्म-जागरूकता का क्षण आता है, तो वह दर्शकों को आत्म-परावर्तन का आमंत्रण देता है। यह क्षण केवल सिनेमाई नहीं, बल्कि दार्शनिक भी है, जो जीवन के बड़े प्रश्नों को उठाता है।
    कुल मिलाकर, यह कृतियों की एक नई लहर का प्रतीक है, जो भारतीय सिनेमा को वैश्विक स्तर पर पुनः स्थापित करती है। यह न केवल एक फिल्म है, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन है, जिससे हम सब कुछ सीख सकते हैं।

  12. Aman Jha Aman Jha
    जुलाई 29, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    बिल्कुल सही कहा, इस फिल्म ने कई आयामों को उजागर किया है। इस पर चर्चा जारी रखनी चाहिए, क्योंकि हमें और भी विचारों की ज़रूरत है।

  13. Mahima Rathi Mahima Rathi
    अगस्त 4, 2024 AT 18:45 अपराह्न

    हूँ, थोड़ा ज्यादा बड़ाई लग रही है 🙄 पर फीर भी, देखे तो ठीक है। 🎬

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