
IMD का सितंबर 2025 अलर्ट: औसत से ज्यादा बारिश, मॉनसून वापसी 17 सितंबर के बाद
सितंबर 2025: बारिश का पैटर्न और मॉनसून वापसी
रिपोर्ट: भार्गव
IMD ने सितंबर 2025 के लिए साफ संकेत दिए हैं—इस बार महीने भर की बारिश सामान्य से ऊपर रहेगी। अनुमान 109% LPA तक है। LPA यानी Long Period Average, जो 167.9 मिमी माना जाता है। यानी सितंबर में सामान्य से ज्यादा पानी गिरेगा और इसके साथ मॉनसून की वापसी भी देरी से होगी। मौसम विभाग कह रहा है कि वापसी अब 17 सितंबर के बाद शुरू होगी और खिंचकर अक्टूबर तक जा सकती है।
यह सिर्फ एक साल का अपवाद नहीं दिखता। पिछले चार दशकों में सितंबर में बारिश बढ़ने और मॉनसून वापसी के देर से होने का ट्रेंड बन चुका है। पहले जहां वापसी सितंबर के पहले हफ्ते से शुरू मानी जाती थी, अब यह खिसककर मध्य से आगे चली गई है। वजहें कई हैं—अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी की आपूर्ति जारी रहना, मॉनसून ट्रफ का उत्तर भारत पर सक्रिय बने रहना, और पश्चिमी तट पर बादलभरी हवाओं का दबदबा।
कहां कितनी बारिश? विभाग के मुताबिक देश के ज्यादातर हिस्सों में सामान्य से ऊपर बारिश के आसार हैं। लेकिन कुछ जेबें ऐसी होंगी जहां कमी दिख सकती है—पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत के हिस्से, सुदूर दक्षिण प्रायद्वीप के कई इलाके, और कुछ उत्तरी सिरे के क्षेत्र। यह असमानता आमतौर पर तब दिखती है जब मुख्य मॉनसून ट्रफ उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत पर ज्यादा समय बिताती है।
तापमान के मोर्चे पर तस्वीर आरामदेह है। मासिक औसत अधिकतम तापमान कई हिस्सों में सामान्य से नीचे या सामान्य के आसपास रहेगा। अपवाद हैं—पूर्व-केन्द्र, पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत, उत्तर-पश्चिम के कुछ भाग और पश्चिमी तट, जहां दिन का तापमान सामान्य से ऊपर जा सकता है। रातें अपेक्षाकृत गर्म रहेंगी; न्यूनतम तापमान देश के बड़े हिस्सों में सामान्य से ऊपर रहने का अनुमान है।
खतरे भी साथ चलेंगे। उत्तराखंड में भूस्खलन और फ्लैश बाढ़ का जोखिम ज्यादा है। दक्षिण हरियाणा, दिल्ली और उत्तर राजस्थान में भी मौसम का असर बड़ा हो सकता है—थोड़े समय में बहुत बारिश, शहरी जलभराव, और ट्रैफिक जाम जैसी स्थितियां। छत्तीसगढ़ में महानदी के ऊपरी कैचमेंट पर भारी बारिश चिंता बढ़ा सकती है, जिससे डाउनस्ट्रीम इलाकों में जलस्तर अचानक बढ़ सकता है।
अब फौरन क्या होने वाला है? 3 सितंबर को पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र, पंजाब और हरियाणा में भारी से बहुत भारी बारिश का दौर रहेगा, फिर तेजी से कम होगा। पूर्व और मध्य भारत में अगले 2-3 दिन तक भारी बारिश बनी रह सकती है। 5 सितंबर को पश्चिमी मध्य प्रदेश में जगह-जगह अत्यधिक भारी बारिश (21 सेमी या अधिक) का अनुमान है।
पश्चिम भारत पर नजर रखें। कोंकण-गोवा, मध्य महाराष्ट्र और गुजरात में 3 से 7 सितंबर के बीच भारी से बहुत भारी बारिश के दौर चलेंगे। 4 से 6 सितंबर के बीच गुजरात के कुछ हिस्सों में, और 6 सितंबर को सौराष्ट्र-कच्छ में, अलग-थलग जगहों पर अत्यधिक भारी बारिश की संभावना जताई गई है। पूर्वी लद्दाख और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में 6 सितंबर के बाद हालात धीरे-धीरे बेहतर होने चाहिए।
मॉनसून वापसी क्यों टल रही है? तकनीकी रूप से वापसी तब घोषित होती है जब कई दिन तक बारिश की गतिविधि थमे, नमी कम हो और हवाओं की दिशा बदले। इस समय ये शर्तें बड़े क्षेत्र में पूरी होती नहीं दिख रहीं। समुद्र से मिल रही नमी और सक्रिय ट्रफ वापसी को रोक रहे हैं। यही वजह है कि सितंबर का बरसाती किरदार मजबूत बना हुआ है।
कृषि पर असर सीधा होगा। देर तक जारी बारिश धान, मक्का और दालों जैसी खरीफ फसलों के लिए नमी का सपोर्ट देगी, खासकर उन इलाकों में जहां अगस्त में कमी रही। लेकिन जिन क्षेत्रों में बहुत भारी बारिश होगी, वहां जलभराव से नुकसान, कटाई में देरी और भंडारण जोखिम बढ़ेंगे। किसानों के लिए संदेश साफ है—खेत से पानी निकासी के रास्ते साफ रखें, कीट और फफूंदी रोगों पर नजर रखें, और कटाई की तारीख मौसम की खिड़कियों के हिसाब से तय करें।
जल प्रबंधन की तस्वीर सकारात्मक हो सकती है। देर से वापसी का मतलब बांधों और जलाशयों में भराव बेहतर होना, जिससे रबी सीजन और पीने के पानी की योजना को मदद मिलती है। हाइड्रोपावर उत्पादन में भी फायदा हो सकता है। पर जहां बेसिन-स्तर पर बारिश बहुत केंद्रित होगी, वहां अचानक बहाव से बाढ़ प्रबंधन चुनौती बनेगा।
शहरों में क्या देखना होगा? शहरी इलाकों में घंटे-दो घंटे की बहुत तेज बारिश से सड़कों पर पानी भरना तय है। निचले इलाकों, मेट्रो अंडरपास, और पुराने ड्रेनेज नेटवर्क वाले शहर ज्यादा प्रभावित होंगे। नागरिक एजेंसियों के लिए जरूरी है कि पंपिंग स्टेशन तैयार हों, नालों की सफाई तेज की जाए और ट्रैफिक डायवर्जन पहले से चिन्हित रहें।
इतिहास क्या कहता है? 1980 के बाद से सितंबर की बारिश में हल्की बढ़त का रुझान दिखता है। कुछ साल कमजोर रहे—1986, 1991, 2001, 2004, 2010, 2015 और 2019। 2025 उस श्रेणी में नहीं दिख रहा। यानी सीजन के आखिरी चरण में भी मॉनसून का दम कायम है।

किस पर असर, क्या तैयारी
राज्यों के हिसाब से तस्वीर अलग-अलग होगी। पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत के हिस्सों, सुदूर दक्षिण प्रायद्वीप और कुछ उत्तरी सिरों में कम बारिश का जोखिम है, तो पश्चिम और मध्य भारत के बड़े हिस्सों में बारिश ज्यादा टिकेगी। दिल्ली-एनसीआर और उत्तर-पश्चिम के मैदानी इलाकों में छोटे-छोटे इंटरवल पर तेज बौछारें आ सकती हैं—यही पैटर्न सबसे ज्यादा बाधा पैदा करता है।
यात्रियों, किसानों और शहरी निवासियों के लिए कुछ काम की बातें:
- यात्रा से पहले लोकल अलर्ट देखें; पहाड़ी मार्गों पर भूस्खलन चेतावनी को हल्के में न लें।
- खेतों में जलनिकासी की लाइन खुली रखें; धान-मत्स्य एकीकृत खेतों में ओवरफ्लो रोकने के लिए अस्थायी बांध मजबूत करें।
- शहरों में कार पार्किंग निचले हिस्सों से हटाकर ऊंचाई पर रखें; अंडरपास और जलभराव-प्रोन सड़कें बचें।
- नदियों के किनारे बसे इलाकों में रात के समय जलस्तर अपडेट लेते रहें; स्थानीय प्रशासन की एडवाइजरी का पालन करें।
- बिजली गिरने के समय खुले मैदान, ऊंचे पेड़ और पानी के स्रोतों से दूर रहें; घर में सर्ज प्रोटेक्शन का इस्तेमाल करें।
तापमान के संदर्भ में दिन का हल्का आराम मिलेगा, लेकिन उमस बनी रह सकती है क्योंकि रातें गर्म रहेंगी। इससे हीट स्ट्रेस पूरी तरह खत्म नहीं होगा। बिजली की मांग शाम के समय ऊंची रह सकती है।
कृषि मंडियों और लॉजिस्टिक्स पर असर भी ध्यान देने लायक है। भारी बारिश से सड़क परिवहन धीमा होगा, खासकर पश्चिम और मध्य भारत के कॉरिडोर पर। फलों-सब्जियों की सप्लाई चेन में देरी और नुकसान को कम करने के लिए कोल्ड-चेन और वेयरहाउसिंग पर जोर बढ़ाना होगा।
आखिर में, मॉनसून की ‘देर से विदाई’ इस साल भी कहानी का हिस्सा है। वापसी में देरी से सितंबर का महीना और ज्यादा अहम बन गया है—खेत, शहर, पहाड़, तट—हर जगह योजना और सतर्कता ही फर्क डालेंगी। मौसम तेज है, तैयारी उससे तेज रखनी होगी।
bhargav moparthi
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
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IMD का अलर्ट सिर्फ आँकड़े नहीं यह जलप्रबंधन की रणनीति में बदलाव का संकेत है। मॉनसून की देर से वापसी से बाढ़ का जोखिम बढ़ता है। किसानों को जल निकासी व्यवस्था जल्दी से जल्दी तैयार करनी चाहिए।
ये बारिश तो देश के हर कोने में बाढ़ की त्रासदी बुन रही है!
देखो सरकार की बातों में छिपा है एक बड़ी साजिश जो हमें विदेशी नियंत्रण से बचाने की राह पर नहीं ले जा रही। इस मौसम में नमी का लगातार इजाफा बरसात को और भी खतरनाक बना रहा है, जैसे कोई बाहरी ताकत हमारी फसलों को बीचा रही हो। हमें अपने जल संसाधनों को खुद ही संभालना चाहिए, नहीं तो विदेशी एजेंडा हमारे ऊपर हावी हो जाएगा।
मॉनसून की देर से वापसी हमें प्राकृतिक चक्र की जटिलता पर एक गहरा विचार करने को प्रेरित करती है।
प्रत्येक वर्ष की तरह इस साल भी मौसम विज्ञान ने हमें बताया कि जलवायु परिवर्तन हमारे क्षेत्रीय पैटर्न को लगातार बदल रहा है।
भारतीय कृषक इतिहास में जल की भूमिका को कभी भी कम नहीं आँका गया है, क्योंकि खेती ही जीवन का मूलधारा है।
अब जब बरसात का हिसाब 109% LPA तक पहुंच रहा है, तो हमें सोचना चाहिए कि बाढ़ के साथ साथ जल संग्रहण की संभावनाएँ भी क्या हैं।
जलाशयों में अतिरिक्त जल का संचय रबी के मौसम में सिंचाई को स्थिर रखने में मदद कर सकता है, लेकिन इसके लिए सही नियोजन आवश्यक है।
स्थानीय समीक्षक अक्सर कहते हैं कि बुनियादी ढांचे में सुधार ही एकमात्र उपाय है, परन्तु सामाजिक जागरूकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
ग्रामीण इलाकों में जल निकासी की कमजोरियों को दूर करने के लिए समुदाय-आधारित समाधान अपनाए जा सकते हैं।
शहरी क्षेत्रों में पुरानी नालियों का सफाई कार्यक्रम जल्द से जल्द शुरू होना चाहिए, नहीं तो ट्रैफिक जाम और जलभराव के साथ जुड़ी समस्याएँ बढ़ेंगी।
तकनीकी तौर पर वॉटर मैनेजमेंट टूल्स का उपयोग करके हम वास्तविक‑समय में जल स्तर की निगरानी कर सकते हैं।
इस प्रकार की डेटा‑ड्रिवन रणनीति न केवल आपदा प्रबंधन में सहायक होगी, बल्कि भविष्य की योजना बनाते समय भी मददगार सिद्ध होगी।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जल के अभाव में भी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, इसलिए संतुलित जल उपयोग ही सतत विकास का मूल सिद्धांत है।
पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन के साथ तालमेल बिठाने के लिए नीतियों में लचीलापन होना चाहिए।
यह लचीलापन न केवल बाढ़ रोकथाम के लिए बल्कि जल संरक्षण के लिए भी आवश्यक है।
अंत में, प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वे अपने समुदाय में जल संरक्षण के उपायों को अपनाएँ और अन्य लोगों को जागरूक करें।
केवल सामूहिक प्रयास ही हमें इस अनिश्चित मौसम के दौर में सुरक्षित और समृद्ध बनाये रख सकते हैं।
प्रकृति के इस अनुकूलन को देख कर हमें नैतिक जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। अत्यधिक वर्षा से उत्पन्न बाढ़ के खतरों को कम करने हेतु सार्वजनिक नीति में सख्त नियम आवश्यक हैं। दुर्भाग्यवश कई बार कर्ता लोग इस बात को नज़रअंदाज़ करते हैं, जिससे कमजोर वर्गों पर असमान प्रभाव पड़ता है। हमें यह मानना चाहिए कि प्रत्येक नागरिक, चाहे वह किसान हो या शहरी कार्यकर्ता, फसल और सुरक्षा दोनों का समान अधिकार रखता है। इस कारण जल प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सिद्धांतों को अपनाना अनिवार्य है।
भाई लोगो, इस बारिश में बहुत कुछ समझना पड़ेगा 😅। जल निकासी के सिस्टम अभी भी पुराने फॉर्मेट में है, ठीक से काम नहीं कर रहा। अगर जल्दी नहीं सुधरेंगे तो बहुत बुरा हो सकता हे। 🙏
चलो इस देर से मॉनसून को अवसर मानें और जल संग्रहन को बढ़ाएं 😊 हम सब मिलकर बाढ़ को रोक सकेंगे
मैं समझती हूँ कि यह बारिश बहुत परेशान कर रही है लेकिन निरंतर शिकायत से कुछ नहीं होगा हमें मिलकर समाधान निकालना होगा