कनाडाई डॉलर ने 2025 में रुपये के खिलाफ रिकॉर्ड 8.59% की बढ़ोतरी की, बन गया सबसे मजबूत
2025 के अंत तक, कनाडाई डॉलर ने भारतीय रुपया के खिलाफ अपना सबसे मजबूत प्रदर्शन किया — एक साल में 8.59% की बढ़ोतरी के साथ। गुरुवार, 4 दिसंबर, 2025 को, कनाडाई डॉलर की विनिमय दर भारत में 64.5445 रुपये प्रति डॉलर रही, जो इस साल की शुरुआत के विपरीत है। फरवरी में यह दर केवल 58.86 रुपये थी। अब यह रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई है। यह सिर्फ एक आँकड़ा नहीं — यह भारत और कनाडा के बीच व्यापार, पर्यटन और निवेश के लिए एक बड़ा संकेत है।
क्यों बल्कि बढ़ा कनाडाई डॉलर?
इस तेज़ तरक्की का कारण केवल एक नहीं है। कनाडा केंद्रीय बैंक ने उच्च ब्याज दरें बनाए रखीं, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक ने धीमी गति से नीति सुधारी। कनाडा की अर्थव्यवस्था ऊर्जा और खनिजों के निर्यात से मजबूत हुई — खासकर तेल और पोटैशियम खनिजों की मांग बढ़ी। वहीं, भारत में आयात बढ़ने के साथ-साथ विदेशी मुद्रा भंडार में थोड़ी कमी आई। यह संतुलन बदल गया।
जनवरी में एक कनाडाई डॉलर सिर्फ 59.58 रुपये के आसपास था। अब वह लगभग 64.50 रुपये के पार हो गया। यानी, एक डॉलर अब लगभग 5 रुपये ज्यादा देता है। यह बदलाव बाजार के लिए एक बड़ा झटका है।
दिसंबर का तूफान: रिकॉर्ड उछाल
दिसंबर 2025 ने इस रुझान को और भी तेज़ कर दिया। Exchange Rates Organization के अनुसार, दिसंबर का औसत दर 64.339 रुपये था — जो पूरे साल के औसत (62.141 रुपये) से काफी ऊपर है। 3 दिसंबर को दर 64.642 रुपये तक पहुँच गई, जो इस साल का सबसे अच्छा स्तर था। इसके बाद थोड़ा गिरावट आई, लेकिन यह गिरावट भी जनवरी के स्तर से ऊपर है।
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि यह वृद्धि अब तक की सबसे तेज़ थी — लगभग एक साल में छह प्रतिशत की बढ़ोतरी। इससे पहले, ऐसा केवल 2016 में हुआ था, जब कनाडाई डॉलर जबरदस्ती 61 रुपये के पार गया था। लेकिन अब यह दर 64.50 के पार है।
भारतीय निर्यातकों के लिए नया अवसर
इस बदलाव का सबसे बड़ा फायदा भारत के निर्यातकों को हुआ है। जब कनाडाई डॉलर मजबूत होता है, तो भारतीय वस्तुएँ कनाडा में सस्ती लगती हैं। इसका मतलब है — भारतीय वस्त्र, दवाएँ, इलेक्ट्रॉनिक्स और खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ रही है।
एक दिल्ली स्थित फार्मास्यूटिकल कंपनी के प्रबंधक ने कहा, “हमने पिछले तीन महीनों में कनाडा के लिए निर्यात 32% बढ़ाया है। अब हम उन्हें 10% कम कीमत पर बेच रहे हैं, लेकिन हमारा लाभ बढ़ रहा है।”
यही नहीं, भारतीय पर्यटक भी कनाडा जाने के लिए तैयार हो रहे हैं। एक बार में 1 लाख रुपये का बजट अब केवल 1,550 कनाडाई डॉलर के बराबर है — जबकि इस साल की शुरुआत में यह 1,680 डॉलर था।
कनाडा के लिए चुनौती: आयात महंगा हुआ
लेकिन यह सब कुछ सुनहरा नहीं है। कनाडा में भारत से आयातित वस्तुएँ अब महंगी हो गई हैं। एक टेक्नोलॉजी कंपनी ने अपने सर्वर के लिए भारत से आयातित हार्डवेयर की कीमत में 18% की बढ़ोतरी की है। यह उन्हें अपने उत्पादों की कीमत बढ़ाने के लिए मजबूर कर रहा है।
कनाडाई उपभोक्ता अब भारतीय चाय, चमड़े के सामान और आभूषणों को खरीदने में संकोच कर रहे हैं। टोरंटो में एक छोटे व्यापारी ने कहा, “मेरी बिक्री 40% गिर गई है। लोग अब चीन या मलेशिया से सस्ते विकल्प ढूंढ रहे हैं।”
अगले साल क्या होगा?
Long Forecast के अनुसार, दिसंबर 2026 तक यह दर 73.48 रुपये तक पहुँच सकती है — एक साल में फिर 14% बढ़ोतरी। लेकिन यह भविष्यवाणी अभी भी अनिश्चित है। अगर अमेरिका के ब्याज दर घटते हैं, तो कनाडाई डॉलर भी कमजोर हो सकता है।
दिसंबर 2027 की भविष्यवाणी 69.59 रुपये है — यानी थोड़ी गिरावट। लेकिन 2028 और 2029 में फिर से बढ़ोतरी की उम्मीद है। यह एक अस्थिर राह है।
विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं?
मुंबई स्थित एक विदेशी मुद्रा विश्लेषक ने कहा, “यह वृद्धि केवल आर्थिक तथ्यों से नहीं, बल्कि भावनात्मक बाजार भावना से भी आ रही है। लोग अब कनाडाई डॉलर को ‘सुरक्षित आश्रय’ मानते हैं — विशेषकर जब विश्व अर्थव्यवस्था अस्थिर हो।”
इसका मतलब है — भारतीय निवेशक भी अब कनाडाई डॉलर में निवेश करने की ओर बढ़ रहे हैं। बैंकों में कनाडाई डॉलर डिपॉजिट की मांग 27% बढ़ गई है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या यह विनिमय दर भारतीय उद्योगों के लिए खतरनाक है?
हाँ, अगर आप कनाडा से आयात करते हैं। कनाडाई डॉलर की मजबूती का मतलब है कि भारत में कनाडाई उत्पाद जैसे तेल, खनिज और यांत्रिक उपकरण महंगे हो रहे हैं। इससे उत्पादन लागत बढ़ती है। लेकिन अगर आप निर्यात करते हैं, तो यह एक बड़ा लाभ है।
क्या भारतीय यात्री कनाडा जाने के लिए अब अधिक तैयार हैं?
बिल्कुल। अब एक लाख रुपये से लगभग 1,550 कनाडाई डॉलर मिल रहे हैं — जबकि जनवरी में यह सिर्फ 1,680 डॉलर था। इसका मतलब है कि एक यात्रा की लागत कम हो गई है। टूर ऑपरेटर्स ने दिसंबर के लिए कनाडा टूर की बुकिंग में 40% की बढ़ोतरी देखी है।
क्या कनाडाई डॉलर अब भारतीय रुपये से बेहतर निवेश है?
अभी के लिए, हाँ। निवेशक अब कनाडाई डॉलर में निवेश कर रहे हैं क्योंकि यह अधिक स्थिर और बढ़ता हुआ दिख रहा है। बैंकों में डॉलर डिपॉजिट की मांग 27% बढ़ी है। लेकिन यह एक अस्थिर बाजार है — अगले छह महीनों में बदलाव हो सकता है।
क्या भारतीय रुपया कमजोर हो रहा है?
रुपया कमजोर नहीं हो रहा — बल्कि कनाडाई डॉलर मजबूत हो रहा है। रुपया अभी भी अमेरिकी डॉलर और यूरो के खिलाफ स्थिर है। यह एक द्विपक्षीय घटना है, न कि एक वैश्विक दुर्बलता। भारतीय रिजर्व बैंक ने अभी तक कोई नीति बदलने की आवश्यकता नहीं महसूस की है।
क्या यह दर अगले साल और बढ़ेगी?
लॉन्ग फॉरकास्ट के अनुसार, दिसंबर 2026 तक यह दर 73.48 रुपये तक पहुँच सकती है। लेकिन यह भविष्यवाणी अमेरिकी ब्याज दरों, ऊर्जा कीमतों और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता पर निर्भर करती है। अगर कोई अचानक आर्थिक संकट आता है, तो यह दर तेजी से गिर सकती है।
क्या भारत और कनाडा के बीच व्यापार बढ़ेगा?
हाँ, लेकिन असमान ढंग से। भारत का कनाडा के प्रति निर्यात बढ़ेगा — खासकर दवाएँ, टेक्नोलॉजी और वस्त्र। लेकिन कनाडा का भारत के प्रति निर्यात घट सकता है क्योंकि उत्पाद महंगे हो रहे हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार विषमता बढ़ सकती है।
bhargav moparthi
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
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ये तो बहुत अच्छी खबर है भाई! निर्यातकों के लिए तो ये बरसात की बूंदों जैसा है। मेरा भाई दवाओं का बिजनेस करता है और अब उसकी बिक्री दोगुनी हो गई है। जिंदगी में कभी-कभी ऐसे मौके आते हैं जब बाहर की हवा हमारे लिए फायदेमंद हो जाती है। अब बस इसे जारी रखना है।
देखो ये बात समझो। कनाडाई डॉलर मजबूत हो रहा है क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था ऊर्जा और खनिजों पर टिकी है और दुनिया भर में इनकी मांग बढ़ रही है। हमारा रुपया कमजोर नहीं है, बस वो देश अपने रिसोर्सेज का बेहतर इस्तेमाल कर रहा है। हमें भी अपने इंडस्ट्रीज को ग्रो करना होगा।
अरे भाई, ये तो बस एक अस्थायी ट्रेंड है। अगर तुम लोग ये सब रिकॉर्ड और परसेंटेज के नाम पर खुश हो रहे हो तो तुम्हारी समझ बहुत कम है। कनाडा का डॉलर इतना मजबूत क्यों है? क्योंकि वो अमेरिका के बाद दूसरा बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। हमारा रुपया तो अभी भी डॉलर के आगे झुक रहा है। असली ताकत तो अमेरिका में है।
यह बात बिल्कुल गलत है! यह सब अमेरिकी बैंकिंग सिस्टम का षड्यंत्र है! कनाडा का डॉलर इतना मजबूत कैसे हो सकता है? जबकि उनकी आबादी हमारे एक छोटे शहर जितनी है! यह एक जानबूझकर बनाया गया आर्थिक धोखा है जिसका उद्देश्य भारत के आर्थिक नेतृत्व को निचला दिखाना है! रिजर्व बैंक अब तक शांत रहा है, लेकिन यह अपराध नहीं हो सकता!
क्या कनाडा में तेल की कीमतें असल में बढ़ी हैं? मैंने पढ़ा कि कनाडा के पास अल्बर्टा के तेल बलुआ पत्थर हैं, लेकिन क्या वो अभी भी उतने लाभदायक हैं? और क्या ये डॉलर की बढ़ोतरी सिर्फ ऊर्जा के कारण है या फिर भारत के आयात बढ़ने के कारण? कोई डेटा तो दो भाई।
ये तो हमारी ताकत का निशाना है! भारतीय दवाएं, टेक्नोलॉजी, वस्त्र - दुनिया भर में चल रहे हैं। अब कनाडा भी हमारे बिना नहीं चल पा रहा। ये सिर्फ एक विनिमय दर नहीं, ये हमारी आत्मविश्वास की बात है। हम अपने उत्पादों को दुनिया को दे रहे हैं - और वो भी अच्छी कीमत पर। जय हिंद!
इस बदलाव को बस एक आंकड़े के रूप में नहीं देखना चाहिए। ये तो एक गहरा संकेत है - कि जब एक देश अपने संसाधनों का समझदारी से इस्तेमाल करता है, तो उसकी मुद्रा भी उसके साथ बढ़ती है। हमें भी अपने उद्योगों को बेहतर बनाना होगा, न कि दूसरों की मुद्रा को दोष देना। ये सब एक सीख है, न कि एक जीत या हार।
इस विनिमय दर के पीछे के आर्थिक तंत्र को समझने के लिए हमें बैलेंस ऑफ पेमेंट्स, कैपिटल फ्लो, और फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व्स के इंटरैक्शन को डीपली एनालाइज़ करना होगा। कनाडा की मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता और कॉमोडिटी एक्सपोजर के कारण उनकी मुद्रा का अप्रत्याशित रूप से बल्की बढ़ना एक नैचुरल रिजल्ट है। भारत के लिए ये एक ट्रिगर है - हमें अपने इंडस्ट्रियल पॉलिसी को रिडिज़ाइन करना होगा।
ये तो बहुत आसान बात है। जब बैंक ब्याज दरें ऊँची रखते हैं तो डॉलर बढ़ता है। जब भारत में इन्फ्लेशन बढ़ता है तो रुपया घटता है। ये तो 10वीं कक्षा की इकोनॉमिक्स है। फिर इतना हड़बड़ा क्यों हो रहे हो?
ये सब एक जाल है! कनाडाई डॉलर की बढ़ोतरी तो अमेरिका और ब्रिटेन के लिए भारत को कमजोर बनाने की साजिश है! वो चाहते हैं कि हम अपनी दवाएं बेचें और उनके तेल खरीदें - और फिर हम उनके गुलाम बन जाएं! रिजर्व बैंक इसे छुपा रहा है! अब तक शांत रहे हो, लेकिन अब उठो! भारत की आर्थिक स्वतंत्रता खतरे में है!
ये बदलाव तो बहुत अच्छा है, लेकिन दोस्तों, इसके साथ ये भी समझो कि हमारी छोटी दुकानें भी इसका बोझ झेल रही हैं। जब कनाडाई डॉलर मजबूत होता है, तो उनके चाय और चमड़े के सामान महंगे हो जाते हैं - और हमारे छोटे व्यापारी बाहर से चीजें नहीं ला पाते। ये एक दोहरी तलवार है - जो कुछ लोगों के लिए बरसात है, वो कुछ औरों के लिए आग है।
मेरा दोस्त कनाडा में है, उसने बताया कि वहां भारतीय चाय की बिक्री घट गई है। लोग अब चीनी चाय ले रहे हैं। लेकिन हमारे फार्मा कंपनियां बहुत बढ़ रही हैं। ये तो बहुत अच्छा है। बस थोड़ा धीरे चलो, जल्दबाजी में गलती न हो जाए।
ओह, तो अब हमारा रुपया कमजोर है? अच्छा, तो क्या अब हमारे बच्चे कनाडा में जाकर दवाएं बेचेंगे? बहुत अच्छा। तुम लोग तो अब अपने देश के बाहर जाकर अपना भविष्य बनाने लगे हो। बस इतना कहना है - बहुत अच्छा काम किया।
हमारी अर्थव्यवस्था के बारे में बात करते समय हमें इस बात को भी याद रखना चाहिए कि ये सब द्विपक्षीय है। कनाडा भी हमारे बिना नहीं चल सकता। जब भारतीय दवाएं उनके अस्पतालों में जाती हैं, तो वो हमारे बिना नहीं रह पाते। ये सिर्फ डॉलर की बात नहीं - ये एक गहरा आर्थिक बंधन है।