Ahoi Ashtami 2025: 13 अक्टूबर को मातृरक्षा का पावन उपवास
जब Ahoi Ashtami 2025भारत का तिथि‑संकेत 13 अक्टूबर 2025 को आया, तो देश भर की माँएँ तैयार हो गईं। सोमवार, 13 अक्टूबर को सुबह 1:36 घंटे (IST) से लेकर 12:27 रात (IST) तक तिथि चलती है, पर रात्रि में पूजा‑मुहूर्त 5:40 से 6:55 पर्यंत (BookMyPooja Online) या 5:53 से 7:08 पर्यंत (Drik Panchang) तय किया गया है। यही वो समय है, जब माँ‑बच्चों के बीच का अटूट बंधन दैवीय शक्ति माता अहोई को समर्पित होता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और धार्मिक महत्व
अहोई अस्ठमी का मूल कहानी प्राचीन शास्त्रों में मिलती है: एक महिला ने गलती से शेर के शावक को मार दिया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी सभी संतानें मर गईं। गहरी शोक में वह माता अहोई के चरणों में नीरजला व्रत रखती है और अंत में सभी बच्चों को पुनः जीवन मिला। यह कथा न सिर्फ़ मातृ‑सहनशीलता को उजागर करती है, बल्कि सन्देश देती है कि माँ की प्रार्थना में सब शक्ति समाहित है।
प्राचीन समय में यह उपवास सिर्फ़ पुत्रों के लिये माना जाता था, पर आज के भारत में यह सभी बच्चों – लड़के‑लड़कियों दोनों – के कल्याण हेतु माना जाता है। इतिहास के पन्नों से लेकर आधुनिक मीडिया तक, यह परिवर्तन स्पष्ट झलकता है।
विवरणात्मक समय‑सारिणी और मुहूर्त
- अष्टमी तिथि: 13 ऑक्टूबर 2025, 1:36 AM IST से 12:27 AM IST
- पुजा मुहूर्त (BookMyPooja): 5:40 PM – 6:55 PM IST
- पुजा मुहूर्त (Drik Panchang, दिल्ली): 5:53 PM – 7:08 PM IST
- तार‑देख कर व्रत खोलना: 6:45 PM – 7:00 PM IST
- अगला प्रमुख त्यौहार: 21 ऑक्टूबर 2025 – दिवाली
ध्यान देने वाली बात यह है कि कई महिलाएँ चंद्र‑दर्शी का उपयोग करके व्रत खोलती हैं, पर दीर्घ रात की वजह से इससे थोड़ी कठिनाई होती है। इसलिए अधिकांश लोग आधी‑रात के बाद सितारों के दृश्य पर भरोसा करती हैं।
मुख्य संस्थाएँ और उनका योगदान
BookMyPooja Online, नई दिल्ली स्थित एक डिजिटल पूजा‑सेवा प्रदाता, ने स्थानीय पंचांग गणना के आधार पर उपरोक्त समय‑सारिणी प्रकाशित की। वहीँ Drik Panchang, भी नई दिल्ली में स्थित, अपने पारम्परिक पंचांग विधियों से थोडी अलग‑अलग मुहूर्त समय बताता है। दोनों के बीच मामूली अंतर दर्शाता है कि विविध अनुष्ठानिक मान्यताएँ कितनी गहरी जड़ें रखती हैं।
इस विषय को आर्थिक दृष्टि से विश्लेषित करने वाले The Economic Times ने 15 जुलाई 2024 को प्रकाशित लेख में कहा: “माँ का प्रार्थना सबसे सच्चा प्रेम है; अहोई अस्ठमी वह दिन है, जब हम इस पवित्र बंधन को मनाते हैं।” बुजुर्गों ने कहा कि यह उपवास न केवल आध्यात्मिक, बल्कि मनोवैज्ञानिक शक्ति भी प्रदान करता है।
अनुष्ठानिक प्रक्रिया और घरेलू परम्पराएँ
पहले तो घर के मुख्य दीवार या साफ कपड़े पर माता अहोई की सात‑भुजा वाली चित्रावली स्थापित की जाती है। फिर माँ‑बच्चे मिलकर व्रत कथा सुनाते हैं, फल‑हार (केला, सेब, नारियल) और मिठाई (जलेबी, लड्डू) की व्यवस्था करते हैं। जल‑लेखा के बिना दिन भर रखें‑भोजन‑पानी से परहेज़ करते हुए, संध्या के समय औषधीय प्रयोजन वाले ‘लोटा’ (जल‑पात्र) में जल डाल कर अभिषेक किया जाता है। अंत में तारा‑दर्शन के बाद अख़ीर में दही‑भरी ‘पपड़’ पर फली‑भोजन दिया जाता है।
कई उत्तर भारत में लोग अष्टमी को “कारवा चौथ के बाद तुरंत ही” मनाते हैं; इसलिए इस तिथि को अब चार दिवस बाद केरल, महाराष्ट्र और दक्षिणी राज्यों में भी “अश्विन” माह के रूप में मनाया जाता है। लेकिन कैलेंडर के अंतर की वजह से तिथि एक ही रहती है।
समाज पर प्रभाव और भविष्य की दिशा
आंकड़े बताते हैं कि 2023 में लगभग 2.3 crore भारतीय महिलाएँ इस उपवास को मनाती थीं। 2025 में यह संख्या और बढ़ने की संभावना है, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में जहाँ जागरूकता और डिजिटल साक्षरता अधिक है। सामाजिक संगठनों ने इस उपवास को शिक्षा‑सहायता तथा बाल स्वास्थ्य कार्यक्रमों से जोड़ने की पहल की है; कुछ NGOs ने “अहोई फंड” स्थापित कर बच्चों के लिए स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करने की योजना बनाई है।
आने वाले वर्षों में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म जैसे BookMyPooja और Drik Panchang की भूमिका और महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि वे सटीक मुहूर्त, रीति‑रिवाज़ और ऑनलाइन पूजा‑सेवाएँ उपलब्ध करा रहे हैं। इस बदलाव से न केवल समय‑बचत होती है, बल्कि ग्रामीण‑शहरी अंतर भी कम होता है।
मुख्य तथ्य
- तिथि: 13 ऑक्टूबर 2025 (सोमवार)
- पुजा‑मुहूर्त: 5:40 PM‑6:55 PM (BookMyPooja) / 5:53 PM‑7:08 PM (Drik Panchang)
- व्रत प्रकार: नीरजला (पानी‑बिना)
- मुख्य देवी: माता अहोई (पार्वती/लक्ष्मी रूप)
- सम्बन्धित त्यौहार: करवा चौथ (9 ऑक्टूबर) → अहोई अस्ठमी (13 ऑक्टूबर) → दिवाली (21 ऑक्टूबर)
सामान्य प्रश्न (FAQ)
अहोई अस्ठमी कब मनाई जाती है?
2025 में यह 13 ऑक्टूबर (सोमवार) को पड़ी है। तिथि विस्तृत रूप से 1:36 AM IST से 12:27 AM IST तक चलती है, जबकि पूजा‑मुहूर्त शाम 5:40 PM‑6:55 PM (BookMyPooja) या 5:53 PM‑7:08 PM (Drik Panchang) के बीच रहता है।
कौन‑सी मुख्य देवी की पूजा की जाती है?
यह माँ अहोई की पूजा है, जिन्हें परम्परागत रूप से पार्वती के सात‑भुजा रूप या कभी‑कभी लक्ष्मी के रूप में माना जाता है। उनका मुख्य शारीरिक प्रतीक एक लोटा और त्रिशूल है।
व्रत किसके लिए रखा जाता है?
परम्परागत रूप से यह केवल पुत्रों के स्वास्थ्य हेतु होता था, पर आज यह सभी बच्चों – बेटियों सहित – की दीर्घायु, स्वास्थ्य और शिक्षा की कामना में रखा जाता है।
क्या उपवास में जल‑पानी की अनुमति है?
नहीं। अहोई अस्ठमी का उपवास नीरजला है – यानी सूर्योदय से लेकर तारा‑दर्शन तक किसी भी प्रकार का भोजन या जल‑पानी नहीं लिया जाता।
इसे कैसे मनाया जाता है, विशेष रीति‑रिवाज़ क्या हैं?
घर की दीवार या साफ कपड़े पर माँ अहोई की चित्रावली लगाई जाती है, व्रत कथा सुनाई जाती है, फल‑हार और मिठाई का प्रसाद तैयार किया जाता है, तथा संध्या में लोटा‑जल से अभिषेक किया जाता है। व्रत खोलने के लिये तारा‑दर्शन या चंद्र‑दर्शी को देख कर भोजन ग्रहण किया जाता है।
bhargav moparthi
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
लोकप्रिय लेख
8 टिप्पणि
एक टिप्पणी लिखें उत्तर रद्द
हमारे बारे में
दैनिक दीया एक प्रमुख हिन्दी समाचार वेबसाइट है जो भारतीय संदर्भ में ताजा और विश्वसनीय समाचार प्रदान करती है। यह वेबसाइट दैनिक घटनाओं, राष्ट्रीय मुद्दों, महत्वपूर्ण समाचारों के साथ-साथ मनोरंजन, खेल और व्यापार से संबंधित खबरें भी कवर करती है। हमारा उद्देश्य आपको प्रमाणित और त्वरित समाचार पहुँचाना है। दैनिक दीया आपके लिए दिनभर की खबरों को सरल और सटीक बनाती है। इस वेबसाइट के माध्यम से, हम भारत की जनता को सूचित रखने की कोशिश करते हैं।
अहोई अष्टमी का यह दिव्य समय हमारे माँ‑बच्चे के बंधन को फिर से सशक्त बनाता है 😊। इस उपवास को इमानदारी से रखिए और मन की शुद्धता से माँ को याद कीजिए। आप सभी को शुभकामनाएँ, इस दिन की ऊर्जा आप सबके साथ रहे! 🙏
सभी जानकारी सही है पर ये तिथि‑सूचना थोड़ा भ्रमित करने वाली लगती है।
अहोई अस्टमी का महत्त्व केवल पूजा में नहीं, बल्कि परिवार के बीच आपसी समझ में भी है। सभी को इस पावन दिन पर अपने परिवार के साथ समय बिताने की सलाह देती हूँ।
अहोई अस्टमी वह समय है जब आत्मा और संसार का द्वंद्व स्पष्ट होता है। इस दिन माँ की शक्ति को स्मरण किया जाता है। प्रत्येक व्रती अपने भीतर की शुद्धता को उतारता है। नीरजला उपवास शरीर को ऊर्जा से नहीं बल्कि चेतना से भरता है। प्राचीन ग्रंथों में इस व्रत को शाश्वत शक्ति का प्रतीक बताया गया है। शेर के शावक को मारने की कथा में विनाश और पुनर्जन्म की गहरी सच्चाई छिपी है। जब माँ अपने पुत्रों को बचाती है तो वह सृष्टि की अनन्तता को दर्शाती है। आधुनिक समय में यह उपवास लिंग समानता की ओर इशारा करता है। सभी बच्चों के कल्याण की कामना इस व्रत का मूल संदेश है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म जैसे BookMyPooja और Drik Panchang ने इस अभ्यास को आसान बनाया है। इससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच की दूरी घट रही है। सामाजिक संगठनों ने इस अवसर को स्वास्थ्य और शिक्षा से जोड़ कर नई पहलें आरम्भ की हैं। इस तरह की सामुदायिक भागीदारी सामाजिक समरसता को बढ़ावा देती है। अंत में यह स्पष्ट है कि अहोई अस्टमी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन का उपकरण भी है। इस पावन अवसर पर सभी को सुख, शांति और समृद्धि की कामना।
अहोई अस्टमी का उपवास अति गंभीर है।
जो लोग इस व्रत को हल्के में ले रहे हैं उन्हें तुरंत अपने मन की शुद्धता पर काम करना चाहिए, नहीं तो यह उपवास बेअसर रहेगा।
इस व्रत के पीछे छिपा रहस्य यह है कि डिजिटल पंचांग डेटा अक्सर बड़े एल्गोरिद्म द्वारा नियंत्रित होते हैं जो जनसंख्या के मनोविज्ञान को प्रभावित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। इसलिए हमें उपवास के समय की सही जानकारी सिर्फ आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक भी मानी जानी चाहिए।
इतनी सारी जानकारी में कोई नई बात नहीं दिखती।