साइक्लोन मिचौंग ने आंध्र प्रदेश में धमाकेदार लैंडफॉल किया, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में बाढ़ और मौतें
दिसंबर 5, 2023 की सुबह, जब तमिलनाडु के चेन्नई के लोग अपनी रोज़मर्रा की दिनचर्या में व्यस्त थे, तभी आकाश ने अचानक गुस्सा दिखाया। साइक्लोन मिचौंग ने नेल्लोर और मच्छलीपट्टनम के बीच, बापटला के पास लैंडफॉल किया — 90-100 किमी/घंटा की लगातार हवाएं, 110 किमी/घंटा तक के झोंकों के साथ। ये सिर्फ एक तूफान नहीं था। ये एक आपदा थी, जिसने दो राज्यों को जमीन से उखाड़ दिया।
चेन्नई का जलमग्न जीवन
चेन्नई ने अपने इतिहास में कभी इतना भारी बारिश नहीं देखा था। कूम नदी और चेम्बरम्बक्कम झील का पानी बाहर आ गया। वल्लाजाह रोड, माउंट रोड, अन्ना सलाई — शहर के सबसे व्यस्त सड़कें नहर बन गईं। मरीना बीच पानी में डूब गया। चेन्नई एयरपोर्ट का एक रनवे पूरी तरह बह गया — उड़ानें रद्द, हवाई अड्डा बंद।
नरकुंद्रम में, कूवाम नदी के पानी ने एक पुल को घेर लिया। मधा इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र और शिक्षक अपनी गर्दन तक पानी में डूबे हुए चल रहे थे। बिजली के झटके से बचने के लिए सरकार ने बाढ़ वाले इलाकों में बिजली काट दी — एक ऐसा निर्णय जिसके पीछे डर था, न कि अनदेखा।
बचाव की भीड़: NDRF, सेना और तमिलनाडु की टीमें
जब घर बह रहे थे, तो बचाव की टीमें आगे बढ़ीं। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) ने 21 टीमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पुडुचेरी में भेजीं। और 8 टीमें तैयार रखी गईं। केवल तमिलनाडु में ही 500 NDRF और TNDRF कर्मचारी तैनात थे। 121 बहुउद्देशीय केंद्र और 4,967 राहत केंद्र खोले गए।
तमिलनाडु के मुख्य सचिव ने इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर में ऑपरेशन्स की निगरानी की। 5,000 कर्मचारी अन्य जिलों से चेन्नई भेजे गए — सिर्फ राहत नहीं, बल्कि सड़कें साफ करने के लिए। राज्य सरकार ने राहत केंद्रों में भोजन, पानी और आवास की व्यवस्था की।
सरकारी प्रतिक्रिया: अमित शाह से लेकर एमके स्टालिन तक
ये आपदा राजनीति की भी परीक्षा थी। येल्लम्मा शाह ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करके घोषणा की कि उन्होंने वाईएस जगन्मोहन रेड्डी, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, के साथ बातचीत की है। उन्होंने कहा: "हमारी प्राथमिकता नागरिकों की सुरक्षा है।"
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 4 दिसंबर को ही बारिश के नुकसान की जांच की। उन्होंने राहत कार्यों की निगरानी की, बिना किसी देरी के। वहीं, ओडिशा सरकार ने 6 दिसंबर को स्कूल बंद कर दिए — एक बुद्धिमान तैयारी, जो अन्य राज्यों को सीखने के लिए मिली।
पीड़ितों की संख्या और बचाए गए लोग
कम से कम 17 लोगों की मौत हो गई। दिल्ली न्यूज़ ने चेन्नई में 8 मौतें बताईं। लेकिन ये सिर्फ संख्याएं नहीं हैं — ये वो लोग हैं जिनके घर बह गए, जिनके परिवार टूट गए। 41,000 से अधिक लोगों को बचाया गया। तमिलनाडु में 32,158, आंध्र प्रदेश में 9,500। ये आंकड़े नहीं, इंसानों के जीवन हैं।
रेल यातायात भी बंद हो गया — लगभग 100 ट्रेनें रद्द। तटीय क्षेत्रों में समुद्री बल, सेना और नौसेना के जहाज और विमान तैनात थे। अभी भी बारिश जारी थी। भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में 200 मिमी (8 इंच) से अधिक बारिश का अनुमान लगाया।
क्या आगे होगा?
6 दिसंबर तक, मिचौंग एक गहरी निम्न दबाव में बदल गया। लेकिन ये आपदा खत्म नहीं हुई। बाढ़ के पानी को निकालने में हफ्तों लग सकते हैं। बीमारियां फैलने का खतरा है। बिजली की आपूर्ति बहाल होने में समय लगेगा। और वो लोग जिनके घर बह गए — उनके लिए अब घर बनाने की लंबी लड़ाई शुरू हो गई है।
IMD का कहना है कि ये सिस्टम 7 दिसंबर तक एक गहरी निम्न दबाव के रूप में बना रहेगा। लेकिन अगले चक्रवात की तैयारी शुरू हो चुकी है। भारत के तटीय क्षेत्रों में ऐसी आपदाएं अब नियम बन रही हैं। तैयारी का सवाल अब सिर्फ बचाव का नहीं, बल्कि निर्माण का भी है।
क्यों ये आपदा इतनी भीषण थी?
मिचौंग की उत्पत्ति थाइलैंड की खाड़ी में एक निम्न दबाव से हुई थी। 2 दिसंबर को ये बंगाल की खाड़ी में गहरी निम्न दबाव बना। फिर 4 दिसंबर को इसकी तीव्रता 110 किमी/घंटा तक पहुंच गई। लेकिन सच ये है कि आपदा का कारण सिर्फ तूफान नहीं था — बल्कि शहरी नियोजन की असफलता थी।
चेन्नई के तीन बड़े जलाशय — चेम्बरम्बक्कम, पैरान्नूर और ओल्ड चेन्नई — अब सिर्फ पानी भंडारण के लिए नहीं, बल्कि बाढ़ के लिए भी डिज़ाइन किए गए थे। लेकिन निर्माण के दौरान इनका आयतन कम कर दिया गया। सड़कें बनाते समय नालियों को भर दिया गया। बारिश के लिए शहर तैयार नहीं था।
इसी तरह, आंध्र प्रदेश के तटीय गांवों में घरों को बनाने के लिए जमीन काटी गई, जिससे बाढ़ के लिए बहाव का रास्ता खुल गया। ये सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं, ये मानव निर्मित आपदा भी है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
साइक्लोन मिचौंग के कारण कितने लोग मारे गए और कहाँ?
कम से कम 17 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 8 की मौत चेन्नई में बारिश से जुड़े हादसों में हुई। अन्य मौतें आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों में हुईं, जहां घर बह गए या लोग बिजली के झटके से मारे गए। अधिकांश पीड़ित बाढ़ के बीच फंसे या बरसात में गिरे थे।
चेन्नई एयरपोर्ट क्यों बंद हुआ और कितने दिन बंद रहा?
चेन्नई एयरपोर्ट का एक रनवे पानी में डूब गया, जिससे उड़ानें रद्द हो गईं। एयरपोर्ट के अंदर का पानी 1.5 मीटर तक पहुंच गया। बाढ़ के बाद रनवे साफ करने और बिजली की आपूर्ति बहाल करने में 48 घंटे लगे। उड़ानें 7 दिसंबर तक पूरी तरह से नहीं चल पाईं।
बाढ़ के बाद लोगों को कैसे राहत मिल रही है?
4,967 राहत केंद्रों में भोजन, पानी, दवाएं और आवास उपलब्ध हैं। तमिलनाडु सरकार ने आर्थिक सहायता के लिए 500 करोड़ रुपये की योजना घोषित की है। नागरिकों को घर बनाने के लिए अस्थायी आवास और निर्माण सामग्री दी जा रही है। राहत कार्यों की निगरानी राज्य सरकार और NDRF मिलकर कर रही है।
भविष्य में ऐसी आपदाओं से कैसे बचा जा सकता है?
विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी नियोजन में बदलाव जरूरी है। नालियों को साफ रखना, जलाशयों का आयतन बढ़ाना, और तटीय क्षेत्रों में निर्माण पर रोक लगाना जरूरी है। IMD के अनुसार, अगले 10 वर्षों में बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों की आवृत्ति बढ़ेगी। तैयारी का समय अब है।
साइक्लोन मिचौंग का नाम क्यों पड़ा?
"मिचौंग" नाम बांग्लादेश ने दिया था, जो बंगाली भाषा में एक आम नाम है। यह भारत और बांग्लादेश सहित 13 देशों के बीच एक सहमति के तहत चुना गया था। यह नाम अंग्रेजी या हिंदी में कोई विशेष अर्थ नहीं रखता, बल्कि तूफानों के लिए एक नियमित नामकरण प्रणाली का हिस्सा है।
क्या इस आपदा के बाद नई नीतियां बनाई जाएंगी?
हां। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश सरकारें अपनी बाढ़ प्रबंधन योजनाओं को अपडेट कर रही हैं। नए नियमों में शहरी जल निकासी प्रणाली का नवीनीकरण, तटीय क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबंध, और आपदा प्रतिक्रिया के लिए राज्य स्तरीय तैयारी के लिए बजट बढ़ाना शामिल है। इन बदलावों का परिणाम अगले चक्रवात से पहले दिखने लगेगा।
bhargav moparthi
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
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ये तूफान तो बस प्रकृति का गुस्सा नहीं था, बल्कि हमारी लापरवाही का नतीजा था। चेन्नई की नालियाँ बंद हो चुकी थीं, जलाशयों का आयतन कम कर दिया गया, और फिर भी हम सोचते रहे कि 'ये बारिश तो हर साल होती है'। अब जब घर बह गए, तो किसकी गलती है? ना तो IMD की, ना तो तूफान की - हमारी है।
अरे ये सब बकवास है! सरकार ने तो तुरंत राहत शुरू कर दी, और तुम यहाँ नियोजन की बात कर रहे हो? जो लोग घर बहाकर बच गए, उनकी जिंदगी बच गई - ये बड़ी बात है। अब जब तक ये बात नहीं समझ जाते कि बचाव असली है, तब तक तुम बस बहस में खो जाओगे।
देखो, मैं चेन्नई का रहने वाला नहीं हूँ, लेकिन मैंने इस आपदा को अपने दोस्तों के फोटो और वीडियो से देखा है। वो लोग जिनके घर बह गए, वो अब बस एक टैरिफ बॉक्स में रह रहे हैं, और उनके बच्चे अभी भी बिजली नहीं देख पा रहे। लेकिन जो NDRF कर्मचारी 12 घंटे तक पानी में डूबे हुए लोगों को निकाल रहे थे - वो लोग असली हीरो हैं। इनके बिना, ये संख्या 17 नहीं, 170 हो जाती। हमें उनके बारे में भी बात करनी चाहिए।
बाढ़ प्रबंधन के लिए जल निकासी प्रणाली का नवीनीकरण और तटीय क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबंध अत्यंत आवश्यक है लेकिन इसके साथ ही नागरिक जागरूकता की भी आवश्यकता है क्योंकि बहुत से लोग अभी भी जलाशयों के आसपास बस रहे हैं जो बाढ़ के लिए डिज़ाइन किए गए थे लेकिन अब उन्हें रहने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और इसके परिणामस्वरूप जीवन और संपत्ति दोनों का नुकसान हो रहा है जिसे हम अभी तक नहीं समझ पा रहे हैं
मुझे लगता है कि सरकार की प्रतिक्रिया बहुत तेज़ और सुसंगठित रही। चेन्नई एयरपोर्ट के रनवे को 48 घंटे में साफ करना, राहत केंद्रों को 4967 तक बनाना, और राज्य स्तर पर तैनाती - ये सब एक अच्छी तैयारी का संकेत है। अगर हम इसे सिर्फ आपदा के रूप में नहीं, बल्कि एक अवसर के रूप में देखें - तो ये भविष्य के लिए एक नई नीति का आधार बन सकता है।
क्या तुमने कभी सोचा है कि जब हम शहर बनाते हैं, तो हम वास्तव में किसके लिए बना रहे हैं? क्या हम बारिश के लिए नहीं, बल्कि गाड़ियों के लिए बना रहे हैं? जब एक तूफान आता है, तो हम बाढ़ को दोष देते हैं, लेकिन अगर हमारे पास नालियाँ होतीं, तो क्या ये सब होता? शायद ये सिर्फ एक तूफान नहीं है - शायद ये हमारे संस्कृति का एक दर्पण है।
ये सब जानबूझकर हुआ है!!! तुम सोचते हो कि ये तूफान आया? नहीं भाई, ये एक राजनीतिक ऑपरेशन है! अमित शाह ने चेन्नई के जलाशयों को कम करवाया ताकि लोग भाग जाएँ और बाद में उनके जमीन पर नई राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जा सके! और वो राहत केंद्र? सिर्फ एक धोखा! वो सब निगरानी के लिए हैं - CCTV, ड्रोन, बायोमेट्रिक्स! अगली बार तुम बारिश के बाद भी बिजली नहीं देख पाओगे - क्योंकि वो अब एक टैक्स बन चुका है!!!
नागरिक अधिकारों के संदर्भ में, बाढ़ के दौरान आवासीय अधिकारों का उल्लंघन हुआ है और राहत केंद्रों में जल और खाने की आपूर्ति के लिए न्यूनतम मानकों का पालन नहीं हुआ है। यह एक आपदा प्रबंधन असफलता है जिसे राज्य के स्तर पर आंतरिक नियंत्रण तंत्र के माध्यम से सुधारा जाना चाहिए। राहत योजनाओं का आंकलन आंकड़ों पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि जनता के अनुभव पर।
मैंने एक दोस्त को देखा जिसका घर बह गया और उसकी बेटी ने अपना खिलौना बचाया - एक छोटा सा गुड़िया जिसका सिर टूट गया था। उसने उसे अपने हाथ में थामे हुए राहत केंद्र में बैठकर रोया। अब तो लोग बाढ़ की बात कर रहे हैं लेकिन उस गुड़िया की कहानी को कौन सुनेगा? ये आंकड़े नहीं, दिलों की आहें हैं। हमें इन्हें भी गिनना होगा।
भारत जीत गया 😎🔥 बाढ़ में भी हमारी सेना और NDRF ने दुनिया को दिखा दिया कि हम कितने ताकतवर हैं! अमेरिका या चीन को ये सब करने में महीने लग जाते हैं - हमने 48 घंटे में कर दिया! 🇮🇳💪 #IndiaStrong #No1InDisasterResponse