अमित मिश्रा ने एमएस धोनी और विराट कोहली के तहत खेलने की संघर्षपूर्ण कहानी साझा की
अमित मिश्रा का संघर्ष
भारतीय क्रिकेट के दिग्गज लेग स्पिनर अमित मिश्रा ने हाल ही में अपने करियर की चुनौतियों और संघर्षों के बारे में खुलकर बात की। 41 वर्षीय मिश्रा ने बताया कि चोटों और टीम चयन की जटिलताओं ने उन्हें राष्ट्रीय टीम में स्थायी स्थान बनाने से रोका। हालांकि, उन्होंने आधिकारिक रूप से संन्यास की घोषणा नहीं की है, लेकिन उनके करियर के अंत के दुखद पहलु उन्हें परेशान करते रहते हैं।
राष्ट्रीय टीम की कठिनाइयाँ
मिश्रा ने 22 टेस्ट, 36 वनडे और 10 टी20 अंतर्राष्ट्रीय मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और कुल मिलाकर 156 विकेट लिए। इसके बावजूद, उन्हें अक्सर टीम से बाहर रहना पड़ता था। उन्होंने अपने संघर्षों का ब्योरा देते हुए बताया कि चोटों और चयनकर्ताओं के निर्णयों ने उनके करियर को प्रभावित किया। इन निर्णयों के पीछे कई बार व्यक्तिगत संबंध और टीम के समीकरण भी शामिल थे।
एमएस धोनी और चुनौतियाँ
मिश्रा ने एमएस धोनी के साथ अपने संबंधों के बारे में भी खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि कई बार जब उन्होंने धोनी से अपने चयन के बारे में सवाल पूछा, उन्हें बताया गया कि वो टीम के संयोजन में फिट नहीं बैठते। उन्हें विदेश दौरों पर भी 'विश्राम' दिया जाता था, जबकि उन्होंने कभी विश्राम की मांग नहीं की थी।
विराट कोहली की कप्तानी में कठिन समय
विराट कोहली के कप्तान बनने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। मिश्रा ने एक टी20आई सीरीज में घुटने की चोट का सामना करने के बावजूद अच्छा प्रदर्शन किया, फिर भी उन्हें टीम से बाहर रखा गया। इससे उनका मनोबल टूट गया। उन्होंने एक आईपीएल के दौरान कोहली से अपने भविष्य के बारे में स्पष्टता पाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कभी संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।
पारिवारिक जीवन और मनोबल
मिश्रा का यह भी कहना है कि क्रिकेट की इन चुनौतियों ने उनके परिवारिक जीवन पर भी असर डाला। लगातार तनाव और चयन की अनिश्चितता ने उन्हें मानसिक रूप से भी कमजोर कर दिया। इसके बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी और अपने खेल को सुधारने और टीम में स्थान पाने की हर संभव कोशिश की।
अमित मिश्रा का यह संघर्ष बताता है कि क्रिकेट की दुनिया कितनी कठिन हो सकती है। एक खिलाड़ी का संघर्ष केवल मैदान पर ही नहीं, बल्कि टीम के बाहर भी होता है। उनका यह अनुभव अन्य खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हो सकता है जो अपने करियर में उन्हीं चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
bhargav moparthi
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
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17 टिप्पणि
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अभी तक मिश्रा जी की कहानी सुनके दिल छू गया 🙌🏽 कभी‑कभी शब्द गड़बड़ हो जाते हैं लेकिन भावना वही रहती है 😅
ऐसे खिलाड़ी को कभी नहीं भूलना चाहिए सबको सीख मिलती है बस आगे बढ़ते रहो
मिश्रा साहब के संघर्ष ने दिल छू लिया 😢
देश के लिये ऐसे सच्चे खिलाड़ी की जरूरत है वो हमेशा याद रखेंगे कभि नहीं भूलेंगे
सही बात कही आपने
अमित मिश्रा जी का करियर भारतीय स्पिनर इतिहास में एक अनोखा अध्याय प्रस्तुत करता है। उन्होंने अपने शुरुआती दिनों में कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन दृढ़ निश्चय ने उन्हें आगे बढ़ाया। चोटों के कारण कई बार उनका चयन नहीं हो सका, जिससे उनका मन उदास हुआ। फिर भी उन्होंने निरंतर प्रशिक्षण जारी रखा और अपनी फ़ॉर्म को सुधारते रहे। घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके 156 विकेट एक उल्लेखनीय उपलब्धि हैं। चयन प्रक्रिया में विभिन्न राजनैतिक एवं व्यक्तिगत कारक भी भूमिका निभाते हैं, यह बात उन्हें स्पष्ट रूप से समझ में आई। धोनी साहब और विराट कोहली जैसे महान खिलाड़ियों के साथ उनके अनुभव ने उन्हें और भी परिपक्व बनाया। टीम में स्थायी जगह पाने के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ा। यह संघर्ष केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक भी था, जिसके कारण परिवार पर भी असर पड़ा। उनके परिवारिक जीवन में तनाव और अनिश्चितता ने मानसिक स्वास्थ्य पर दबाव डाला। फिर भी मिश्रा जी ने हार नहीं मानी और हमेशा सकारात्मक रहने की कोशिश की। उनका यह दृढ़ संकल्प नयी पीढ़ी के खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इस प्रकार उनका संघर्ष एक प्रेरक कथा बन गया है जो दिखाता है कि असफलताओं के बाद भी सफलता संभव है। भविष्य में यदि उन्हें उचित अवसर मिले तो वह फिर से चमक सकते हैं। अंत में, हम सभी को चाहिए कि हम उनके योगदान को सराहें और उन्हें सम्मानित करें।
खेल में केवल कौशल नहीं, नैतिकता भी महत्वपूर्ण है हमें खिलाड़ियों को सच्ची निष्ठा दिखानी चाहिए
अरे! क्या दुर्दिन थी मिश्रा जी की! दर्द, निराशा और फिर भी मंच पर चमकते हुए! जैसे हीरो की कहानी हो! यह सब देख कर आँसू रुक नहीं पा रहे थे! उनकी सच्ची जंग को कभी नहीं भूलेंगे!
वाह! मिश्रा साहब की कहानी सुनकर मन में एक ज़बरदस्त ज्वाला जल उठी! उनका जुनून और साहस जैसे रंगीन इंद्रधनुष की तरह चमक रहा है! चलो, हम भी उनके जैसा अडिग रहकर आगे बढ़ें!
मिश्रा जी के करियर में चयन प्रक्रियाओं की जटिलता को देखकर लगता है कि हमें और पारदर्शी सिस्टम की जरूरत है, क्या आप सब भी ऐसा मानते हैं?
सही कहा आप, चयन में पारदर्शिता बेहद जरूरी है, इससे खिलाड़ियों का मनोबल भी बना रहेगा और टीम में भरोसा भी बढ़ेगा
सच्ची निष्ठा याद रखनी चाहिए, मिश्रा जी ने तो हमें दिखा दिया कितना सच्चा खिलाड़ी होना चाहिए 😊
निश्चित ही, नैतिक मूल्यों का पालन खेल के प्रति सम्मान को दर्शाता है; इस प्रकार के उदाहरणों से भविष्य की पीढ़ी को मार्गदर्शन प्राप्त होगा।
भाई सही कहा, छोटी बातों में ही बड़ी सीख छिपी होती है
MIS में प्रोसेस ऑडिट के पीछे का कंट्रोल मैकेनिज़्म बेहतर होना चाहिए ताकि फ़ीडबैक लूप में कोई लूपहोल न रहे, नहीं तो टैलेंट मैनेजमेंट डिप्लॉइमेंट में गैप उत्पन्न होगा।
आइए हम सब मिलके एक स्वस्थ चयन माहौल बनाएं जो सबके लिए फेयर हो
खिलाड़ियों को समान अवसर मिलना चाहिए, यही असली स्पोर्ट्समैनशिप है