अनुच्छेद 370 हटने के छह साल बाद जम्मू-कश्मीर में निवेश, आईआईटी और पर्यटन ने क्या बदल दिया?
अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर का नया चेहरा
पांच अगस्त 2019, जम्मू-कश्मीर के इतिहास में वह तारीख है, जिसे काफी लोग नई शुरुआत या विवादों की जड़ दोनों मानते हैं। इस दिन केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाया और राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर दिया। राज्य अब दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर (विधायिका सहित) और लद्दाख (विधायिका के बिना)—में बंट गया। छह साल बाद तस्वीर भी जुदा है, और बहस भी जारी।
केंद्र सरकार ने दावा किया कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर के विकास के रास्ते खुलेंगे। आंकड़ों की माने तो छह साल में क्षेत्र में निवेश का नया दौर शुरू हुआ है। सरकारी रिपोर्टों के मुताबिक 80,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के प्रोजेक्ट आए। इन्वेस्टमेंट की राह में सबसे बड़ी सुविधा थी—लैंड एक्विज़िशन की प्रक्रिया को आसान करना और अनुच्छेद 35A का हटना, जिससे बाहरी लोग अब कश्मीर में भूमि खरीद सकते हैं। इससे कई बड़ी कंपनियों और प्राइवेट बाड़ी का ध्यान खींचा गया।
शैक्षणिक माहौल में भी तेजी से बदलाव आए हैं। पहली बार जम्मू-कश्मीर में आईआईटी और दूसरे राष्ट्र स्तर के संस्थान खुले हैं, जिसने युवाओं के लिए उच्च शिक्षा और नौकरी के अवसर बढ़ाए हैं। कश्मीर के स्टूडेंट्स को अब अन्य भारतीय राज्यों जैसी सुविधाएं और मौके मिल रहे हैं। इससे पहले, कई नेशनल स्कीम्स और कानून जैसे पंचायत चुनाव या शहरी सरकार से जुड़े 73वां और 74वां संशोधन, राज्य तक नहीं पहुंच पाते थे। अब ये प्रावधान लागू हो पाए हैं।
पर्यटन और जमीनी हकीकत
अनदेखा नहीं किया जा सकता कि कश्मीर की अर्थव्यवस्था का बड़ा पहिया—पर्यटन—अब तेजी से दौड़ रहा है। गुलमर्ग समेत घाटी के अन्य इलाकों में गोंडोला प्रोजेक्ट्स और रिलीजन सर्किट्स ने देशी-विदेशी पर्यटकों को खूब खींचा। पिछले कुछ सालों में अमरनाथ यात्रा और वैष्णो देवी जैसी धार्मिक यात्राओं की संख्या भी काफी बढ़ गई है। होटल, रेस्टोरेंट, टैक्सी आदि सेवाओं में बच्चों और महिलाओं तक को रोजगार मिलने लगा है।
बात अगर सुरक्षा की करें तो प्रशासन का दावा है कि आतंकवाद और सीमा पार से घुसपैठ में कमी आई है। वहीं, दूसरी ओर स्थानीय निवासियों और विशेषज्ञों का हिस्सा मानता है कि रोजगार के आंकड़े आज भी चिंता का कारण हैं। छोटे-मोटे व्यापारी और युवा खुद को नई व्यवस्थाओं में खोया महसूस कर रहे हैं—नौकरियों की कमी, अनुमति प्रक्रियाओं में पेंच और राजनीति में प्रतिनिधित्व की कमी—ये सब रोजमर्रा की चर्चा का हिस्सा हैं।
राजनीतिक बहसों में राज्य का दर्जा लौटाने की मांग और क्षेत्रीय पहचान को बचाए रखने की कोशिशें आज भी तेज हैं। सुप्रीम कोर्ट 2023 में इस बदलाव को सही ठहरा चुका है, लेकिन जमीनी स्तर पर भरोसे की कमी और क्षेत्रीय असमानता जैसी समस्याएं आज भी महसूस होती हैं।
bhargav moparthi
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
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सत्ता ने ज़मीन आसान करके निवेश को बढ़ावा दिया है और इससे युवा रोजगार पा रहे हैं
गुलमर्ग में गोंडोला सफ़र बढ़िया लगा 🙂
आईआईटी का आगमन तकनीकी इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर रहा है और स्किल सेट्स में लक्षणीय सुधार हो रहा है, इससे प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग और एग्जीक्यूटिव टैलेंट पाइपलाइन दोनों को लाभ मिल रहा है
सरकार कहती है सब ठीक है पर वास्तविकता में नौकरी के अवसर अभी भी सीमित हैं और बहुत से लोग फिर भी आर्थिक दबाव महसूस कर रहे हैं
वो बड़ी तस्वीर देखो 😢💔 निवेश तो आया लेकिन आम लोग अभी भी संघर्ष में हैं 😡🔥
प्रगति की राह हमेशा चुनौतियों से घिरी रहती है। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद आर्थिक नीतियों में बदलाव आया है। इस बदलाव ने निवेशकों को आकर्षित किया है जिससे विकास का माहौल तैयार हुआ है। नई परियोजनाओं ने बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ किया है और रोजगार के नए द्वार खोलें हैं। लेकिन हर विकास के साथ सामाजिक समायोजन की आवश्यकता भी बढ़ती है। स्थानीय जनता को नई नीतियों के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई महसूस होती है। शिक्षा संस्थानों का विस्तार युवा वर्ग के लिए आशा की किरण बनता है। आईआईटी के परिसर ने उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को ऊँचा किया है। फिर भी यह सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही सीमित नहीं रहना चाहिए। पर्यटन ने भी आर्थिक धारा को गहरा किया है, लेकिन पर्यावरणीय प्रभाव को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सुरक्षा की गारंटी का दावा किया जाता है, परंतु स्थानीय सुरक्षा के मुद्दे अभी भी विद्यमान हैं। सरकारी आँकड़े सकारात्मक दिखते हैं, पर वास्तविकता में कई छोटे व्यापारी अभी भी असुरक्षित महसूस करते हैं। यह आवश्यक है कि नीति निर्धारक इन अंतराल को समझें और समुचित समाधान प्रदान करें। अंत में कहा जा सकता है कि विकास और सामाजिक संतुलन दोनों को साथ लेकर चलना ही सतत प्रगति की कुंजी है। इसलिए निरंतर संवाद और निगरानी ही इस परिवर्तन को सफल बना सकती है।
निवेश की बढ़ोतरी सही दिशा में कदम है और साथ ही स्थानीय समुदाय के हितों को भी संतुलित करना जरूरी है
काफी शोर है पर असली बात तो ये है कि बड़े प्रोजेक्ट्स में छोटे किसान कभी नहीं देखते 🙄💸
बहुत बढ़िया लगता है पर असली दर्द तो जमीन के दामों में ही है 😞
मैंने बताया था कि हर कदम पर आँकड़े बनाए जाते हैं लेकिन जमीन पर असर देखना पड़ेगा
देखो, ये सब बातें सिर्फ शब्द हैं, असली बदलाव तभी होगा जब हर गाँव तक इन सुविधाओं का पहुँच हो
कभी सोचा है कि सभी विदेशी निवेश सिर्फ खुफिया ऑपरेशन नहीं हो सकते? ये सरकार के पीछे के बड़े खेल हैं, जो राष्ट्रीयता को कमजोर कर रहे हैं 😡
सांसकृतिक धरोहर को बनाये रखना और साथ ही विकास को आगे बढ़ाना एक साथ संभव है, हमें मिलकर इस दिशा में काम करना चाहिए
सांस्कृतिक मान्यताओं की रक्षा करना कई बार आर्थिक विकास से ऊपर रखी जानी चाहिए; इस प्रकार की प्राथमिकताओं में ही समाज की सच्ची प्रगति निहित है।
बिल्कुल सही कहा 🙌 विकास का सही रास्ता तभी उज्ज्वल होगा जब सांस्कृतिक मूल्यों को सम्मान मिले और साथ ही आधुनिकता को अपनाया जाए 😊
चलो मिलकर ऐसे प्रोजेक्ट्स बनाते हैं जो रोजगार और परम्परा दोनों को सुदृढ़ करें, यही हमारा सकारात्मक भविष्य है
मैं इस भावना से पूरी तरह सहमत हूँ, साथ मिल कर हम हर चुनौती को पार कर सकते हैं 😊
देश की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता सबसे पहले होनी चाहिए, यही असली विकास है
संतुलन ही समाधान है