महिला दिवस 2025: 'तेजी से कार्य करना' के साथ भारत में महिलाओं के लिए नया आह्वान
8 मार्च, 2025 को भारत और पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की धूमधाम से मनाया जाएगा, और इस बार का थीम है — 'Accelerate Action' यानी 'तेजी से कार्य करना'। यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक आपातकालीन आह्वान है। शिक्षा से लेकर रोजगार तक, सुरक्षा से लेकर सम्मान तक — हर क्षेत्र में महिलाओं के लिए अभी भी बहुत कुछ बाकी है। और इस बार, देश के स्कूलों, कॉलेजों और कार्यालयों में ऐसे भाषण दिए जा रहे हैं, जो बस शब्दों से नहीं, बल्कि जिम्मेदारी से बोल रहे हैं।
क्यों 'तेजी से कार्य करना'? क्यों अब?
संयुक्त राष्ट्र का यह थीम इसलिए चुना गया क्योंकि पिछले दशकों में जो आगे बढ़ने का वादा किया गया, वह धीमा पड़ गया है। भारत में अभी भी लगभग 65% महिलाओं की साक्षरता है, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 82% है। नौकरी के मैदान में महिलाओं का हिस्सा 24% से भी कम है — जो दुनिया के अन्य विकासशील देशों की तुलना में बहुत कम है। और ये सिर्फ आंकड़े नहीं, ये रोज के जीवन की कहानियाँ हैं। एक गाँव की लड़की जिसे पढ़ने भेजने के बजाय शादी के लिए तैयार किया जा रहा है। एक शहर की महिला जिसे ऑफिस में एक ही काम के लिए पुरुष सहयोगी से कम वेतन मिल रहा है। ये वही दर्द है जिसे जग्रन जोश, एनडीटीवी और नवभारत टाइम्स जैसे स्रोत अब भाषणों में सीधे उठा रहे हैं।
भाषणों में छिपा संदेश: सशक्तिकरण सिर्फ नारा नहीं
जग्रन जोश की लेखिका अनिषा मिश्रा ने एक भाषण शुरू किया: 'आदरणीय प्रधानाचार्य जी, सम्माननीय शिक्षकगण, और मेरे प्रिय साथियों...' — ये शुरुआत सिर्फ आदर की बात नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी की शुरुआत है। उनका संदेश साफ है: 'महिला सशक्तिकरण केवल सरकार की या महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।' और यही बात नवभारत टाइम्स के भाषण में भी दोहराई गई है — जहाँ एक कविता के साथ शुरुआत की गई: 'नारी है शक्ति, नारी है ज्योति, नारी बिना ये दुनिया है खोती।'
ये भाषण बस शब्दों का ढेर नहीं हैं। ये एक वादा है — 'हमें हर लड़की को शिक्षा देने के लिए प्रेरित करना चाहिए, महिलाओं को कार्यस्थल पर समान अवसर दिलाने के लिए आवाज उठानी चाहिए और समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और सुरक्षा की भावना को मजबूत करना चाहिए।' और अंत में एक वचन: 'महिलाओं का सम्मान करेंगे, उनके अधिकारों की रक्षा करेंगे और एक ऐसा समाज बनाएंगे जहां वे सुरक्षित, स्वतंत्र और सशक्त महसूस करें।'
15 स्लोगन, एक ही संदेश
इस बार के सबसे ज़बरदस्त हिस्से हैं — वो स्लोगन जो स्कूलों के बच्चों से लेकर सरकारी कार्यालयों तक गूंज रहे हैं। जग्रन जोश ने 10 ऐसे स्लोगन दिए हैं, जो दिल को छू जाते हैं:
- 'नारी शक्ति है, नारी सम्मान है, समाज की प्रगति का यही प्रमाण है!'
- 'बेटी पढ़ाओ, आगे बढ़ाओ, देश को समृद्ध बनाओ!'
- 'जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं का वास होता है!'
- 'सशक्त नारी, सशक्त समाज – यही है प्रगति का राज!'
एनडीटीवी ने बच्चों के लिए और भी ज़बरदस्त पंक्तियाँ दी हैं — जैसे: 'प्राचीन विद्वान गार्गी से लेकर आधुनिक नेताओं तक, भारतीय महिलाएँ हमेशा से ताकत, लचीलापन और बुद्धिमत्ता का प्रमाण रही हैं।' ये न सिर्फ प्रेरणा देते हैं, बल्कि इतिहास को भी जीवित रखते हैं।
क्या बदल रहा है? क्या नहीं?
कुछ बदल रहा है। आज देश के बहुत से गाँवों में लड़कियाँ अपने परिवार के सामने खड़ी होकर कह रही हैं — 'मैं पढ़ूंगी।' कुछ कॉर्पोरेट कंपनियाँ अब महिलाओं के लिए फ्लेक्सिबल वर्किंग घंटे ला रही हैं। कुछ राज्यों में लड़कियों के लिए बसों का विशेष समय तय किया गया है। लेकिन अभी भी 15 लाख लड़कियाँ हर साल स्कूल छोड़ देती हैं। लगभग 70% महिलाएँ अपने काम के लिए घर से बाहर जाने के लिए डरती हैं। और एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर तीसरी महिला को घर पर शारीरिक या मानसिक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।
ये तथ्य उन भाषणों को और भी गहरा बना देते हैं। क्योंकि जब एक बच्चा अपने स्कूल में 'नारी ही शक्ति है, नारी ही ज्ञान है' चिल्लाता है, तो वह बस शब्द नहीं बोल रहा — वह एक नए विचार को जन्म दे रहा है।
अगला कदम: भाषण से कार्रवाई तक
अगले कुछ महीनों में, जब ये सभी भाषण समाप्त हो जाएँगे, तो असली परीक्षा शुरू होगी। क्या स्कूल वाले लड़कियों के लिए टॉयलेट बनाएंगे? क्या कंपनियाँ महिलाओं को समान वेतन देंगी? क्या पुलिस स्टेशनों में महिला ऑफिसर्स की संख्या बढ़ेगी? क्या एक गाँव की माँ अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए अपने घर का खर्चा उठा पाएगी?
महिला दिवस का असली मतलब यही है — न सिर्फ एक दिन के लिए गीत गाना, बल्कि हर दिन के लिए बदलाव लाना। जब एक लड़की अपने घर से निकलकर कॉलेज जाती है, तो वह न सिर्फ एक छात्रा बन जाती है — वह एक बदलाव का प्रतीक बन जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2025 की थीम क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?
2025 की थीम 'Accelerate Action' है, जिसका हिंदी अनुवाद 'तेजी से कार्य करना' है। यह थीम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले 10 वर्षों में लैंगिक समानता की गति धीमी पड़ गई है। भारत में महिला साक्षरता अभी भी पुरुषों से 17% कम है, और बेरोजगारी की दर भी अधिक है। यह थीम बताती है कि अब सिर्फ बातें करना काफी नहीं — हमें तेजी से कार्रवाई करनी होगी।
भारत में महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?
भारत में महिलाओं के सामने तीन बड़ी चुनौतियाँ हैं: शिक्षा में असमानता (65% साक्षरता दर), कार्यस्थल पर भेदभाव (कम वेतन, कम नेतृत्व भूमिकाएँ), और सुरक्षा की कमी (घरेलू हिंसा और शहरी अपराध)। एक एनजीओ की रिपोर्ट के मुताबिक, हर चौथी महिला ने कभी न तो कानूनी मदद ली और न ही शिकायत दर्ज की। ये संख्याएँ भाषणों के पीछे का असली दर्द हैं।
स्कूलों में भाषण देने से क्या फायदा होता है?
स्कूलों में भाषण देने से बच्चों के दिमाग में लैंगिक पूर्वाग्रह धीरे-धीरे गायब होते हैं। जब एक लड़का 'नारी ही शक्ति है' बोलता है, तो वह अपने भाई, दोस्त और भविष्य के बच्चों के लिए एक नया मानक स्थापित कर रहा है। एक अध्ययन के अनुसार, ऐसे भाषण देने वाले बच्चों में 40% अधिक लड़कियों के खिलाफ भेदभाव कम होता है। ये भाषण भविष्य के नागरिकों को बनाते हैं।
क्या भारत में महिलाओं के लिए अभी तक कोई सफल नीति बनी है?
हाँ, कुछ नीतियाँ काम कर रही हैं। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान ने 10 लाख से अधिक लड़कियों को शिक्षा दिलाई। महिला सशक्तिकरण योजना के तहत 2.3 लाख महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया गया। और अब कई राज्यों में लड़कियों के लिए निःशुल्क बस यातायात और शिक्षा अनुदान शुरू हुए हैं। लेकिन इन योजनाओं का फैलाव अभी भी शहरी क्षेत्रों तक सीमित है।
महिला दिवस पर भाषण देने के बाद आम आदमी क्या कर सकता है?
आम आदमी का सबसे बड़ा योगदान है — रोज के जीवन में छोटे-छोटे बदलाव। अपने घर में बेटी को बेटे के बराबर अवसर देना। ऑफिस में महिला सहयोगी को उसकी बात सुनना। एक अजनबी लड़की को अपने घर के बाहर अकेले नहीं छोड़ना। ये छोटे कदम ही बड़े बदलाव की शुरुआत हैं। एक व्यक्ति का बदलाव, एक परिवार को बदल देता है — और एक परिवार एक गाँव को बदल देता है।
क्या भारत में महिलाओं के लिए भविष्य उज्ज्वल है?
भविष्य उज्ज्वल है — लेकिन यह उज्ज्वल होगा तभी, जब हम सब मिलकर इसे बनाएँ। आज भारत में 45% युवा महिलाएँ अपने करियर के लिए शहर जाने के लिए तैयार हैं। एक नई पीढ़ी जो लड़कियों को बेटी नहीं, बल्कि नेता मानती है। अगर हम इन आवाजों को दबाएँगे, तो यह उज्ज्वल भविष्य बन जाएगा। अगर हम चुप रहेंगे, तो यह बस एक भाषण बनकर रह जाएगा।
bhargav moparthi
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
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अच्छा लगा ये पोस्ट। मैंने अपने गाँव के स्कूल में एक लड़की को पढ़ाया था, जिसने अभी IIT में एडमिशन ले लिया। बस एक बार उसे सही दिशा दे दो, बाकी वो खुद आगे बढ़ जाती है।
अरे भाई, ये सब बकवास है। सिर्फ भाषण देकर क्या होगा? जब तक घर में बेटी को चाय पीने के बाद बर्तन नहीं धोने देंगे, तब तक ये सब नाटक है।
मैं तो बहुत उत्साहित हूँ कि आजकल बच्चे भी इतनी गहराई से सोच रहे हैं। मेरा बेटा तो अपने दोस्त को बोलता है कि लड़कियों को ऑफिस में अधिक जिम्मेदारी देनी चाहिए। और जब मैं उससे पूछता हूँ कि तू ऐसा क्यों सोचता है, तो वो कहता है कि उसकी माँ भी बहुत तेज हैं लेकिन घर के काम में फंसी हुई हैं। ये बदलाव छोटे-छोटे घरों से शुरू हो रहा है। मैंने अपने दोस्त को भी बताया कि उसकी बहन को अपनी बात सुननी चाहिए, और अब वो उसके साथ प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। ये छोटे कदम ही बड़े बदलाव लाते हैं।
सशक्तिकरण का अर्थ बस शिक्षा और रोजगार नहीं है यार ये एक सामाजिक कॉग्निटिव रिफ्रेमिंग का प्रक्रिया है जिसमें लैंगिक असमानता के बेसलाइन नॉर्म्स को डिस्कन्स्ट्रक्ट करना पड़ता है और उसके बाद ही स्ट्रक्चरल इंटरवेंशन्स वर्क करते हैं जैसे कि फ्लेक्सिबल वर्किंग मॉडल्स और एक्सेस टू सेफ स्पेस और फिर इनके साथ कंपनी के डीवर्सिटी पॉलिसीज का इंप्लीमेंटेशन जो अक्सर नॉन-कॉम्प्लायंट रहता है
मैंने अपने ऑफिस में एक नया प्रोग्राम शुरू किया है जिसमें महिलाओं के लिए मेंटरशिप सेशन होते हैं। अब तक 12 लड़कियाँ इसमें शामिल हो चुकी हैं और तीन ने अपने टीम लीडर के पद पर भी लिया है। ये छोटा कदम है, लेकिन असर बहुत बड़ा है।
इस सब के पीछे एक बड़ा सवाल है कि क्या हम वाकई बदल रहे हैं या बस एक नया नारा बना रहे हैं? हर दशक में एक नया नारा आता है। अब ये 'Accelerate Action' है। पर क्या असली बदलाव हो रहा है? या बस फोटोज और स्लोगन बढ़ रहे हैं? मैं तो देख रहा हूँ कि अभी भी लड़कियों को घर से निकलने के लिए अनुमति मांगनी पड़ती है। ये बदलाव तभी होगा जब हम अपने दिमाग को बदलेंगे।
ये सब बाहरी चित्र है! असली बात ये है कि जब भी कोई लड़की अपनी शादी के बाद नौकरी करने की बात करती है, तो उसके ससुराल वाले उसे गाली देते हैं! और ये सब चिल्लाहट तो बस दूर के शहरों के लिए है! गाँवों में तो लड़कियों को बेटी बचाओ के बजाय बेटी बेचो का नारा चल रहा है! ये सब नाटक है! असली बात ये है कि हमारी संस्कृति ने ही लड़कियों को दास बना दिया है! 😡🔥
महिला सशक्तिकरण के लिए एक्सेस टू एजुकेशन और एक्सेस टू सेफ स्पेस दो अलग-अलग पैरामीटर्स हैं जिन्हें सिंक्रोनाइज करना होगा। अगर लड़कियाँ बस घर से बाहर निकल पाएंगी तो शिक्षा अधूरी है। और अगर वो ऑफिस में जाएंगी लेकिन हर दिन हरासमेंट का सामना करेंगी तो वो बस एक अस्थायी फॉर्मूला है।
मैंने अपने टाउन में एक ग्रुप बनाया है जहाँ महिलाएँ अपने घरों में बैठकर अपने बच्चों के लिए पढ़ाती हैं। एक माँ ने बताया कि उसकी बेटी अब खुद को लेडर मानती है। ये बदलाव छोटा है लेकिन गहरा है।
भाई ये सब बकवास है। हमारे देश में तो लड़कियाँ खुद ही घर रहना चाहती हैं। ऑफिस में जाने की जरूरत ही नहीं। और वेतन का मामला? अगर लड़की ने बेटी को जन्म दिया तो उसे घर का काम करना ही चाहिए। ये नारे बस शहरों के लिए हैं। 😎🇮🇳
ये भाषण तो बस फेसबुक पर शेयर करने के लिए हैं। असली बदलाव कहाँ हुआ? नहीं हुआ।
मैंने अपने गाँव के एक लड़के को देखा जिसने अपनी बहन के लिए बस का टिकट खरीदा और उसे कॉलेज छोड़ दिया। उसने कहा - 'मैं तो बस उसके लिए एक रास्ता खोल दूँगा, बाकी वो खुद चलेगी।' ये ही असली बदलाव है। बस थोड़ा साहस चाहिए।
अरे भाई ये सब तो बस लोगों को दिखाने के लिए है। मैंने अपने दोस्त को देखा जिसकी बहन को शादी के बाद ऑफिस जाने से मना कर दिया गया। अब वो बस घर पर टीवी देख रही है। तो ये सब भाषण क्या कर रहे हैं? बस फेक न्यूज़ बना रहे हैं।
ये सब गलत है महिलाएं असल में ज्यादा शक्तिशाली नहीं हैं वो बस ज्यादा भावुक हैं और इसलिए उन्हें ज्यादा समय देना पड़ता है और ये नारे बस उन्हें बहका रहे हैं
मैंने अपने गाँव में एक छोटी सी लाइब्रेरी खोली है जहाँ लड़कियाँ बिना किसी डर के पढ़ सकती हैं। एक लड़की ने मुझे बताया कि अब वो डॉक्टर बनना चाहती है। ये बदलाव छोटा है, लेकिन ये असली है।
एक अच्छा प्रोग्राम शुरू किया गया है जिसमें लड़कियों को लीडरशिप ट्रेनिंग दी जा रही है और उन्हें रिसोर्सेज भी मिल रहे हैं। इसका आउटपुट अभी दिख रहा है। अगर ये नीति एक राज्य से दूसरे राज्य में एक्सटेंड हो जाए तो ये एक टर्निंग पॉइंट बन सकता है।
मैंने अपने बेटे को बताया कि अगर वो कभी लड़की के साथ ऑफिस में जाए तो उसकी बात सुने। उसने आज बताया कि उसकी सहयोगी ने एक नया प्रोजेक्ट लिया है और वो उसकी हेल्प कर रहा है। बस एक बात सुन लो और बदलाव आ जाता है। 🙌
अरे भाई, ये सब तो बस एक फैशन है। अगर आज कोई लड़की नौकरी कर रही है तो उसका मतलब ये नहीं कि वो सशक्त है - बल्कि ये है कि उसका घर बैंक लोन नहीं चुका पा रहा। ये सब नारे बस बाजार के लिए हैं।