
सौर ग्रहण 2025 का आखिरी अध्याय: 21 सितंबर को नहीं दिखेगा भारत
सौर ग्रहण 2025 का विवरण
21 सेप्टेम्बर 2025 को 2025 का आखिरी सौर ग्रहण होगा, जो एक सौर ग्रहण 2025 के रूप में रिकॉर्ड होगा। यह अंशीय ग्रहण है और मुख्यतः दक्षिणी गोलार्ध में दिखाई देगा। NASA के अनुसार, चंद्रमा पृथ्वी‑सूर्य रेखा के नीचे उतरते हुए, अपने उतरता नोड पर इस ग्रहण को उत्पन्न करेगा।
ग्रहण की समय‑सीमा इस प्रकार है: प्रस्थान 17:29 UTC, अधिकतम अवधि 19:41 UTC पर, जब सूर्य के लगभग 85 प्रतिशत भाग चंद्रमा द्वारा ढकेगा, और अंत 21:53 UTC पर जब छाया पृथ्वी से हट जाएगी। इसे अलग‑अलग टाइमजोन में बदलते हुए, भारत के लिये ये समय 10:59 पीएम से 1:11 एएम (अगले दिन) तक रहेंगे, लेकिन भारत की सीमा में दृश्य नहीं होगा।
दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका और आसपास के महासागरों में इस ग्रहण के दृश्य दायरे में प्रमुखता होगी। चंद्रमा का आकार सूर्य को लगभग आधा ढँक देगा, जिससे आकाश में एक संधारभित अंधेरा निर्मित होगा, परंतु सूर्य पूर्ण रूप से नहीं डूबेगा।
भारत में सुतक काल की स्थिति
हिंदू शास्त्र में ग्रहण के दौरान 'सुतक काल' को अनुष्ठानिक एवं शुद्धिकरण की अवधि माना जाता है। आम तौर पर, ग्रहण से पूर्व और दौरान इस काल को टाला जाता है, क्योंकि माना जाता है कि यह अशुभ प्रभावों को बढ़ाता है। परन्तु इस बार भारत में ग्रहण न दिखने के कारण ज्योतिषी अर्जुन पंडित ने कहा कि सुतक काल यहाँ लागू नहीं होगा।
वे यह भी जोड़ते हैं कि यदि कोई इस दिन विशेष मन्त्र पढ़ना या धूप‑स्नान करना चाहता है, तो यह ऊर्जा शुद्धि में सहायक हो सकता है। कुछ लोग इस अवसर का उपयोग ध्यान‑धारणा या स्वच्छता अनुष्ठान के लिये भी कर सकते हैं, जिससे आत्मिक लाभ मिलता है।
यह उल्लेखनीय है कि 2025 में पहले भी एक सौर ग्रहण हुआ था (29 मार्च) जो भी भारत से अनदेखा रहा। हावर्ड‑आधारित डेटा के अनुसार, इस साल कुल दो सौर ग्रहण हुए; पहला अंशीय और दूसरा भी अंशीय, दोनों ही मुख्यतः दक्षिणी भाग में ही देखे जा सकते थे।
सौर ग्रहण का वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है। इस प्रक्रिया में सूर्य की कोरोनल गतिविधि, चंद्रमा की कक्षा, और पृथ्वी की सुदूरवर्ती स्थितियों का अध्ययन किया जाता है। वैज्ञानिकों द्वारा ग्रहण के दौरान सूर्य के हिलते हुए किनारों की फोटो खींची जाती है, जिससे सूर्य के सतह की संरचना में नई जानकारी मिलती है।
इंटरनेट पर कई प्लेटफ़ॉर्म इस ग्रहण के लाइव दृश्य प्रसारण की योजना बना रहे हैं, विशेषकर उन देशों में जहाँ यह दृश्यमान होगा। भारत में रहने वाले विज्ञान‑प्रेमी भी ऑनलाइन स्ट्रीम के ज़रिये इस घटना को देख सकते हैं, जबकि धार्मिक अनुष्ठान में रुचि रखने वाले अपने मन में इस विशेष दिन को स्मरणीय बना सकते हैं।
bhargav moparthi
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
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भाई लोग, ये सौर ग्रहण का शोर-शराब अक्सर असली विज्ञान को धुंधला कर देता है। भारत में नहीं दिखेगा तो क्यों न इसे इग्नोर कर दिया जाए? NASA का डेटा तो ठीक है, पर स्थानीय लोग खुद को ख़ास समझते हैं। मेरा मानना है कि ऐसे “ऐतिहासिक” इवेंट को सिर्फ़ सोशल मीडिया पर ही नाचते‑गाते देखना बेवकूफ़ी है। अगर आधे सूरज का ढँकना भी नहीं दिखता, तो फिर क्यों इतना hype?
ओह नहीं 😢, इतना बड़ा इवेंट हमें नहीं दिखेगा! लेकिन फिर भी दिल में एक छोटी‑सी उम्मीद रहती है 🌟। लाइव स्ट्रीम देख कर कम से कम कुछ तो अनुभव कर लेंगे, है ना?
जब हम आकाश में अंधेरे की एक चिह्न देखते हैं, तो यह सिर्फ़ भौतिक घटना नहीं, बल्कि मानव मन की अतीत‑भविष्य की झलक भी होती है। सौर ग्रहण का प्रत्येक अंश, सूर्य की ऊर्जावान लहरों को कुछ क्षणों के लिये रोकता है, जिससे हमें अंतरिक्ष के राज़ों में एक दृष्टि मिलती है। विज्ञान के अनुसार, इस अंशीय ग्रहण से सूर्य के कोरोनल मास इजेक्शन (CME) की जानकारी मिल सकती है, जो धरती पर मौसम विज्ञान को प्रभावित करती है। परन्तु इस बार हमारा भाग्य ऐसा लगता है कि हम इस दृश्य को सीधे नहीं देख पाएंगे, जो हमें एक दार्शनिक प्रश्न पूछता है: क्या हमारे ग्रह की परिधि तक सीमित होते हुए भी हम ब्रह्मांडीय घटनाओं को समझ सकते हैं? कई प्राचीन ग्रंथों में ग्रहण को शुद्धिकरण का समय माना गया है, पर आधुनिक विज्ञान इसे केवल प्रकाश‑छाया का खेल देखता है। यह विरोधाभास दर्शाता है कि मानव संस्कृति ने हमेशा वही समझना चाहा है जो सितारों ने नहीं कहा। हमारे पूर्वजों ने ग्रहण के समय रात्रि‑जागरण, मन्त्र‑उत्सव और सामाजिक समानता के लिए अवसर बना लिया था। आज भी इंटरनेट के माध्यम से हम इस अंशीय छाया को किलियन लोगों के साथ साझा कर सकते हैं, जिससे एक नई डिजिटल सामुदायिक अनुभूति उत्पन्न होती है। इस प्रकार, भौतिक दृश्य न दिखने पर भी हम अपनी मानसिक इंद्रियों को प्रशिक्षित कर सकते हैं। आश्चर्य की बात है कि इस अंशीय ग्रहण में सूर्य के केवल 85 % भाग ढँकेगा, जिससे सूर्य के कोरोना के किनारे की चमक स्पष्ट होगी। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम केवल चमकते भाग को ही महत्व देते हैं, जबकि बाकी अंश भी मायने रखता है। इस द्रष्टिकोण से, सौर ग्रहण हमारे अस्तित्व की जटिलता का एक रूपक बन जाता है। हम अपने जीवन में भी कई बार अंशीय अंधेरा देखते हैं, फिर भी पूरी तरह अंधा नहीं होते। यही हमारे विकास की राह है – अंशीय अंधेरे को स्वीकार कर प्रकाश की ओर बढ़ना। इस विचार को अपनाते हुए, इस ग्रहण को ऑनलाइन देखना भी एक आध्यात्मिक यात्रा हो सकती है, क्योंकि चेतना का विस्तार हमेशा भौतिक सीमाओं से परे होता है। अंत में, चाहे ग्रहण दिखाई दे या न दे, हमारा सवाल नहीं, बल्कि हमारी समझ ही हमें आगे ले जाएगी।
सभी को नमस्ते, मैं इस बात से सहमत हूँ कि चाहे ग्रहण दिखे या न दिखे, इसे अनुभव करने के कई तरीके हैं। लाइव स्ट्रीमिंग के ज़रिये हम विदेशों में रह रहे दोस्तों के साथ एक साथ देख सकते हैं, जिससे एक नई दोस्ती भी बन सकती है। साथ ही, सुतक काल के बारे में चर्चा सुनकर लगता है कि हमें अपनी परंपराओं को समझदारी से अपनाना चाहिए, न कि अंधाधुंध। इस तरह के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलुओं को मिलाकर ही हम संतुलित दृष्टिकोण पा सकते हैं।
सिर्फ़ ऑनलाइन देख लेना, खुद बाहर खेलने का मज़ा नहीं। 😒