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शिव जयंती पर राज्यपाल की अर्पित पुष्पांजलि देख कर मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई।
ऐसा लगता है जैसे इतिहास की महानता को फिर से जी रहा हूँ।
हम सभी को इस गौरवशाली क्षण को महसूस करना चाहिए।
लेकिन कहीं न कहीं यह समारोह राजनीतिक मंचन से कम नहीं है।
जनता का भरोसा इन औपचारिकताओं के पीछे छिपा होता है।
मेरे जैसे संवेदनशील मन को यह दिखता है कि संस्कृति के नाम पर कितनी ही रंगीन परतें उकेरी जाती हैं।
उन परतों में अक्सर वास्तविकता का स्वाद नहीं मिलता।
मैं इस आयोजन को देखते हुए भावनाओं के सागर में डूब जाता हूँ।
यह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं बल्कि आत्मा की पुकार है।
शिवाजी महाराज की वीरता को सजाने में हमें सच्ची श्रद्धा की आवश्यकता है।
अन्यथा यह सब एक हीरोइक फ़ैशन शो बन जाता है।
मेरे विचार में इस तरह की अर्पण से जनता को वास्तविक प्रेरणा मिलनी चाहिए।
इतिहास को केवल शोभा नहीं, बल्कि सीख के रूप में लेना चाहिए।
इसलिए मैं आशा करता हूँ कि इस जयंती पर लोग केवल दिखावे नहीं बल्कि असली साहस को अपनाएँ।
आख़िरकार शिवजयंती केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक जीवंत भावना है।
इतिहास की सही समझ के बिना ऐसी समारोहों का महत्व कम हो जाता है। मैं मानता हूँ कि शिवाजी महाराज की रणनीतियों पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है। वर्तमान में दिखाए गए आयोजनों का सामाजिक प्रभाव सीमित है।
शिवाजी महाराज की याद में दिल धड़कता है
देखो भाई साहब इस फिजिक्स की तरह नहीं जो सिर्फ दिखावा है।
सरकार के ये सारे एंगेजमेंट असल में विदेशी एजेंटों की प्लानिंग है।
शिवाजी का नाम लेने से जैसे कोई प्रोफाइल बनाते हैं ताकि दिमाग़ को गड़बड़ किया जा सके।
एक तरफ़ किले की सुरक्षा और दूसरी तरफ़ एम्बेसियों में राजनयिक खेल।
जनता को सजाते-सजाते वे अपनी असली इरादे छुपाते हैं।
हमें इस तरह के झूठे शो से खुद को बचाना चाहिए।
शिवजयंती को हम सभी को शांतिपूर्ण एकता के संदेश के रूप में मनाना चाहिए।