कार्तिकेय व्रत – सम्पूर्ण जानकारी

जब हम बात करते हैं कार्तिकेय व्रत, हिन्दू धर्म में कार्तिकेय को समर्पित उपवास जो ज्येष्ठ महीने की शुक्ल त्रयोदिन में किया जाता है. इसे अहर्निश व्रत भी कहा जाता है, और यह कार्तिकेय पूजा, कार्तिकेय देवता को अन्न और दीप से सम्मानित करने की विधि के साथ जुड़ा है।

कार्तिकेय व्रत के मुख्य घटक तीन पहलुओं में बँटे हैं: उपवास, पूजा और अभ्यर्थना। उपवास का प्राथमिक उद्देश्य शुद्धता और मन की शांति प्राप्त करना है, जबकि पूजा में कार्तिकेय को मोती, नारियल और शुद्ध जल चढ़ाकर उनके आशीर्वाद की कामना की जाती है। अभ्यर्थना में मुनियों की शिक्षाएँ और ग्रन्थों का पाठ किया जाता है जिससे सिद्धि मिलती है।

यह व्रत कार्तिकेय व्रत के नाम से ही खोजे जाने वाले कई भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अवसर है। इसके साथ जुड़े ज्येष्ठ माह, हिन्दू कैलेंडर में वह महीना जिसमें कार्तिकेय व्रत का पालन किया जाता है के बारे में समझना आवश्यक है, क्योंकि यही समय सूर्य की गति और चंद्र के दो पक्षों के बीच संतुलन प्रदान करता है। ज्येष्ठ माह में शुक्ल त्रयोदिन के दौरान, त्रिकाल उपवास (सुबह, दोपहर, शाम) का पालन किया जाता है, जिससे शरीर और मन दोनों में ऊर्जा का संतुलन बनता है।

त्रिकाल उपवास और त्यौहार की विशेषताएँ

त्रिकाल उपवास का अर्थ है दिन के तीन प्रमुख समय‑समय पर भोजन न करना – सुबह उषान, दोपहर मध्याह्न और शाम संध्या। यह नियम कार्तिकेय व्रत के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ा है और इसे अपनाने से श्रद्धा में वृद्धि होती है। साथ ही, त्रिकाल पूजा, सुबह, दोपहर और शाम को अलग‑अलग मंत्र और जल अर्पण करना भी इस व्रत में शामिल है। कई बार यह कहा जाता है कि त्रिकाल उपवास का पालन करने से स्वास्थ्य में सुधार, मानसिक शान्ति और इच्छाओं की पूर्ति होती है।

व्रत के दौरान कुछ विशेष रिवाज़ भी हैं – जैसे कार्तिकेय के प्रिय स्नान स्थल पर पवित्र जल से स्नान करना, गजक (दुर्गा) के साथ कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित करना और संध्या में दीप जलाकर प्रार्थना करना। इन सभी कार्यों को करने से व्रती अपने आराध्य से निकटता महसूस करता है और व्रत के फलस्वरूप समृद्धि और सौभाग्य की आशा रखता है।

आजकल कई लोग इस व्रत को सामाजिक मीडिया पर भी साझा करते हैं, जहाँ वे अपने अनुभव, पकवान और विशेष भोग के चित्र पोस्ट करके अन्य समुदाय के साथ जुड़ते हैं। इस प्रकार, कार्तिकेय व्रत न केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिकता को बढ़ाता है बल्कि सामाजिक एकता को भी प्रोत्साहित करता है।

भविष्य में यदि आप इस व्रत को मनाने की सोच रहे हैं, तो ध्यान रखें कि इससे जुड़े कैलेंडर की तिथियों, मुहूर्त और विशेष पूजा सामग्री की तैयारी पहले से कर लें। इससे न केवल प्रक्रिया सरल होगी, बल्कि आप अपने व्रत के सभी लाभों को पूर्ण रूप से प्राप्त कर पाएँगे। अब नीचे आप कार्तिकेय व्रत से संबंधित विभिन्न प्रकार के लेख, टिप्स और अपडेट पाएँगे, जो आपको इस पवित्र उपवास को सही ढंग से निभाने में मदद करेंगे।

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