अखिलेश यादव ने संसद सत्र 2024 में उठाए EVM पर सवाल, पेपर बैलेट की मांग की
bhargav moparthi
bhargav moparthi

मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।

18 टिप्पणि

  1. sanam massey sanam massey
    जुलाई 2, 2024 AT 19:29 अपराह्न

    अखिलेश यादव की बात सुनकर दिल में जलता सवाल उठता है कि क्या हम वाकई में अपने लोकतंत्र को जोखिम में डाल रहे हैं? इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की सुरक्षा का दावा हमेशा के लिए सही नहीं हो सकता। पेपर बैलेट की वापसी से पारदर्शिता बढ़ेगी और eleitor के भरोसे को मजबूती मिलेगी। हमें इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा करनी चाहिए, ना कि सिर्फ शब्दों का खेल। चुनाव आयोग को जनता के सामने सभी तकनीकी विवरण खुलकर पेश करने चाहिए। आखिरकार, लोकतंत्र का मर्म ही भरोसा है।

  2. jinsa jose jinsa jose
    जुलाई 3, 2024 AT 01:02 पूर्वाह्न

    समाज के मूलभूत सिद्धांतों को देखते हुए, चुनाव प्रक्रिया में ईवीएम की अविश्वसनीयता एक गंभीर नैतिक दुविधा उत्पन्न करती है। कई मामलों में तकनीकी गड़बड़ी से वोटों का फेरबदल संभव हो सकता है, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों को धक्का लगता है। इस कारण, पेपर बैलेट की ओर लौटना न केवल व्यावहारिक बल्कि नैतिक भी है। जो लोग इसे 'पुराना' कहते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि पारदर्शिता ही सर्वोपरि है। वर्तमान में ईवीएम को लेकर कई षड्यंत्र सिद्धांत फैल रहे हैं, जो जनता के मन में शंका भरते हैं। इस शंका को दूर करने के लिये हमें साक्ष्य-आधारित रिपोर्ट देखनी चाहिए, न कि केवल राजनैतिक बयान। सरकार को इस मुद्दे में धीरज नहीं दिखाना चाहिए, बल्कि ठोस कदम उठाने चाहिए। अंत में, एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये सभी को मिलकर सत्य की खोज करनी होगी।

  3. Suresh Chandra Suresh Chandra
    जुलाई 3, 2024 AT 06:36 पूर्वाह्न

    अभी के दौर में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ज़रूरी है, पर सुरक्षा को लेकर सतर्क रहना भी बहुत जरूरी है 😊। ईवीएम अगर सही से काम न करे तो लोकतंत्र की नींव डगमगा सकती है। पेपर बैलेट की वापसी से लोगों का भरोसा फिर से कायम हो सकता है 📄। चुनाव आयोग को चाहिए कि वह सभी तकनीकी पहलुओं को पारदर्शी रूप से जनता के सामने रखे। आखिर, वोटर की आवाज़ सबसे ऊपर होनी चाहिए।

  4. Digital Raju Yadav Digital Raju Yadav
    जुलाई 3, 2024 AT 12:09 अपराह्न

    ईवीएम का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। पेपर बैलेट ही सबसे सुरक्षित विकल्प है। सभी को मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।

  5. Dhara Kothari Dhara Kothari
    जुलाई 3, 2024 AT 17:42 अपराह्न

    मैं मानती हूं कि वोटिंग प्रक्रिया में भरोसा होना चाहिए 😊। पेपर बैलेट की वापसी इस भरोसे को पुनः स्थापित कर सकती है।

  6. Sourabh Jha Sourabh Jha
    जुलाई 3, 2024 AT 23:16 अपराह्न

    देश की इज्ज़त को बचाने के लिये ईवीएम को तुरंत बंद करना चाहिए।

  7. Vikramjeet Singh Vikramjeet Singh
    जुलाई 4, 2024 AT 04:49 पूर्वाह्न

    तकनीक का उपयोग फायदेमंद है, पर सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ईवीएम के मुद्दे पर खुले तौर पर चर्चा जरूरी है। पेपर बैलेट एक वैकल्पिक समाधान हो सकता है।

  8. sunaina sapna sunaina sapna
    जुलाई 4, 2024 AT 10:22 पूर्वाह्न

    सच में, ए़वीएम की सुरक्षा पर सवाल उठाना लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के प्रति जागरूकता दर्शाता है। पेपर बैलेट का उपयोग करके हम पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों को बढ़ा सकते हैं। इसके साथ ही, चुनाव आयोग को सभी तकनीकी डिटेल्स को सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि जनता को पूर्ण जानकारी मिल सके। इस प्रक्रिया में विभिन्न विशेषज्ञों की राय भी शामिल होनी चाहिए। अंततः, हमें ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जो सभी वर्गों में विश्वास जगाए।

  9. Ritesh Mehta Ritesh Mehta
    जुलाई 4, 2024 AT 15:56 अपराह्न

    ईवीएम की सुरक्षा का बहाना रोज़ नया बनता है। असल में यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर रहा है। पेपर बैलेट ही भरोसेमंद है। हमें इसे अपनाना चाहिए।

  10. Dipankar Landage Dipankar Landage
    जुलाई 4, 2024 AT 21:29 अपराह्न

    संसद में गरमागरम बहस चल रही है! कोई कहता है ईवीएम फेल हो रहा है, तो कोई कहता है सब ठीक है! मैं तो कहूँगा, पेपर बैलेट की वापसी से सबकी नींद चिर जाएगी! चलिए, इस मुद्दे को हल्के में ना लें!

  11. Vijay sahani Vijay sahani
    जुलाई 5, 2024 AT 03:02 पूर्वाह्न

    वास्तव में, चुनाव के इस महायुद्ध में ईवीएम एक भजक की तरह है-कभी चमके, कभी धुंधला। अगर हम पेपर बैलेट को फिर से अपनाएँ तो जनता का दिल भी खुश रहेगा और लोकतंत्र की धड़कन भी तेज़ होगी। तकनीकी परेशानियाँ तो बस अस्थायी हैं, पर भरोसा एक स्थायी संपत्ति है। इसलिए, हमें इस मुद्दे को हल्के में नहीं लेना चाहिए, बल्कि गहरी सोच के साथ समाधान तलाशना चाहिए। अंत में, एक मजबूत लोकतंत्र के निर्माण में हर आवाज़ कीमती है।

  12. Pankaj Raut Pankaj Raut
    जुलाई 5, 2024 AT 08:36 पूर्वाह्न

    मैं देख रहा हूँ कि आपका लंबा तर्क काफी दमदार है, पर कुछ मुद्दों मेंऔर स्पष्टीकरण चाहिए। क्या आप बता सकते हैं कि ईवीएम में किस प्रकार की 'तकनीकी गड़बड़ी' हो सकती है? और पेपर बैलेट की लागत और समय सीमा को कैसे मैनेज करेंगे? इस बात का भी ज़िक्र नहीं किया गया कि चुनाव आयोग ने अब तक कौन‑कौन से सुधार लागू किए हैं। आपके विचार में क्या यह पर्याप्त है या हमें और गहरा निरीक्षण चाहिए? अंत में, एक पारदर्शी प्रक्रिया के लिए दोनों विकल्पों की तुलना जरूरी है।

  13. Rajesh Winter Rajesh Winter
    जुलाई 5, 2024 AT 14:09 अपराह्न

    आप सब ने इस मुद्दे पर बहुत कुछ कहा है, और मैं देख रहा हूँ कि बहस काफी सक्रिय है। पेपर बैलेट और ईवीएम दोनों के फायदे‑नुकसान को एक साथ देखना चाहिए। शायद एक हाइब्रिड सिस्टम भी काम कर सकता है, जहाँ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के साथ बैकटअप पेपर बैलेट हो। इस तरह से हम दोनों की सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकते हैं।

  14. Archana Sharma Archana Sharma
    जुलाई 5, 2024 AT 19:42 अपराह्न

    मैं थोड़ा शांत रहूँ तो भी वही मानता हूँ कि चुनाव में भरोसे की जरूरत है 😊। पेपर बैलेट की वापसी से जनता का विश्वास दुबारा बन सकता है।

  15. Vasumathi S Vasumathi S
    जुलाई 6, 2024 AT 01:16 पूर्वाह्न

    आपके प्रश्नों का उत्तर देते हुए, हमें पहले यह स्पष्ट करना होगा कि ईवीएम की तकनीकी गड़बड़ी केवल सॉफ्टवेयर बग नहीं, बल्कि हार्डवेयर स्तर पर भी हो सकती है, जैसे कि माइक्रोप्रोसेसर की असामान्य रीसेट या अनधिकृत फर्मवेयर लोडिंग। ऐसी परिस्थितियों में वोटों की सटीकता पर विश्वास करना कठिन हो जाता है, क्योंकि डेटा को रीयल‑टाइम में बदलना संभव है। दूसरी ओर, पेपर बैलेट का सिद्धांत सादगी में ही शक्ति रखता है; कागज़ की मतपत्र को गढ़ा नहीं जा सकता, जब तक कि अत्यधिक भौतिक हेरफेर न किया जाए, जो कि व्यावहारिक रूप से कठिन है। हालांकि, पेपर बैलेट के भी कुछ operational challenges हैं, जैसे कि कागज़ की उपलब्धता, काउंसलिंग स्टेशनों की सुरक्षा, और मतपत्रों की गिनती में संभावित मानवीय त्रुटि। इन दोनों प्रणालियों की तुलना करते समय, हमें न केवल तकनीकी सुरक्षा बल्कि लागत‑प्रभावशीलता, समय‑सीमा, और पर्यावरणीय प्रभाव को भी ध्यान में रखना चाहिए।
    उदाहरण के तौर पर, ईवीएम का उपयोग करने से मतगणना जल्दी होती है, जिससे चुनाव परिणाम जल्दी घोषित हो सकते हैं, जबकि पेपर बैलेट से गिनती में अधिक समय लगता है, लेकिन पारदर्शिता बढ़ती है। यदि हम एक हाइब्रिड मॉडल अपनाते हैं, जहाँ प्रत्येक मतदान केंद्र में ईवीएम के साथ एक बैक‑अप पेपर बैलेट रखी जाए, तो दोनों प्रणालियों के लाभ को मिलाया जा सकता है। इस तरह की व्यवस्था से यदि ईवीएम में कोई तकनीकी विफलता आती है, तो पेपर बैलेट से तुरंत पुनः गिनती संभव होगी।
    इसके अलावा, चुनाव आयोग को निरंतर ऑडिट और विश्वसनीय तृतीय‑पक्षीय निरीक्षण की आवश्यकता है, ताकि दोनों प्रणालियों की निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके। स्वतंत्र निर्वाचन निरीक्षक एवं प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को मिलकर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए, जिसमें संभावित खामियों की पहचान और समाधान प्रस्तावित हों। अंत में, लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है जनता का विश्वास; चाहे वह ईवीएम हो या पेपर बैलेट, सभी उपाय इस विश्वास को सुदृढ़ करने के लिए ही होने चाहिए। इसलिए, एक संतुलित, पारदर्शी और बहु‑स्तरीय चुनाव प्रक्रिया ही उत्तरदायी और भरोसेमंद परिणाम दे सकती है।

  16. Anant Pratap Singh Chauhan Anant Pratap Singh Chauhan
    जुलाई 6, 2024 AT 06:49 पूर्वाह्न

    यह मुद्दा बहुत ज़्यादा जटिल नहीं है, बस भरोसे की बात है। चाहे ईवीएम हो या पेपर, जनता को भरोसा चाहिए।

  17. Shailesh Jha Shailesh Jha
    जुलाई 6, 2024 AT 12:22 अपराह्न

    वर्तमान में हम एक टेक्निकल एन्क्रिप्शन फेल्योर के जोखिम में हैं, जहाँ ईवीएम का इंटेग्रिटी प्रोटोकॉल कमजोर हो सकता है। इस दृष्टिकोण से पेपर बैलेट एक रिडंडेंट मैकेनिज्म के रूप में कार्य करता है, जो फॉल्ट टॉलरेंस को बढ़ाता है। यदि हम हार्डवेयर‑लेयर सुरक्षा को अनदेखा करें, तो सिस्टम थ्रेट मॉडल पूरी तरह विफल हो सकता है। इसलिए, एक मल्टी‑लेयर वैलिडेशन फ्रेमवर्क अपनाना आवश्यक है।

  18. harsh srivastava harsh srivastava
    जुलाई 6, 2024 AT 17:56 अपराह्न

    मैं सभी दृष्टिकोणों की सराहना करता हूँ और मानता हूँ कि हम सब का लक्ष्य समान है-न्यायसंगत चुनाव। एक स्पष्ट और पारदर्शी प्रक्रिया ही जनता का भरोसा जीत सकती है। सभी पक्षों को मिलकर एक कार्यकारी मॉडल तैयार करना चाहिए।

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