अखिलेश यादव ने संसद सत्र 2024 में उठाए EVM पर सवाल, पेपर बैलेट की मांग की
अखिलेश यादव ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर उठाए सवाल
संसद सत्र 2024 में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के उपयोग पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। यादव ने EVM की विश्वसनीयता और सुरक्षा को लेकर कई अहम मुद्दे उठाए, जिससे संसद में गरमा-गरम बहस शुरू हो गई।
यादव ने अपने भाषण में कहा कि EVM में खराबी और छेड़छाड़ के कई मामले सामने आए हैं, जिससे जनता का विश्वास चुनाव प्रक्रिया से उठता जा रहा है। उन्होंने सरकार को सुझाव दिया कि पारंपरिक पेपर बैलेट सिस्टम की ओर वापस लौटने का समय आ गया है क्योंकि ये अधिक भरोसेमंद और पारदर्शी है।
विपक्षी नेताओं का समर्थन
अखिलेश यादव की इस मांग को विपक्ष के अन्य प्रमुख नेताओं का भी समर्थन मिला। उन्होंने भी EVM की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए और इसे चुनाव प्रक्रिया के लिए खतरा बताया। इन नेताओं ने यह दावा किया कि कई देशों जैसे अमेरिका, जर्मनी और जापान ने सुरक्षा चिंताओं के कारण EVM का उपयोग बंद कर दिया है।
समाजवादी पार्टी के नेता यादव ने भारत में EVM के भविष्य पर विचार करने के लिए एक विस्तृत चर्चा की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए और जनता के समक्ष इसकी पूरी जानकारी साझा करनी चाहिए।
सरकार का विरोध
आशा के अनुरूप, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अखिलेश यादव की इस मांग का विरोध किया। BJP के नेताओं ने कहा कि EVM पूरी तरह से सुरक्षित और छेड़छाड़-प्रमाण हैं। उन्होंने चुनाव आयोग के कई आश्वासनों का हवाला देते हुए कहा कि EVM के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।
चुनाव आयोग ने भी कहा कि EVM की सुरक्षा को लेकर कड़े इंतजाम किए गए हैं और इन्हें कोई भी बाहरी ताकत प्रभावित नहीं कर सकती। इसके अलावा, आयोग ने यह भी कहा कि उन्होंने EVM की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कई उच्च सुरक्षा तंत्रों को शामिल किया है।
भविष्य की चुनावी रणनीति
अखिलेश यादव और अन्य विपक्षी नेताओं ने कहा कि EVM को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे हैं, उनका जवाब देना जरूरी है। वे चाहते हैं कि चुनाव आयोग पारदर्शिता बनाए रखे और जनता के विश्वास को बहाल करने के लिए कदम उठाए। उन्होंने कहा कि पारंपरिक पेपर बैलेट सिस्टम इस संदर्भ में अधिक न्यायसंगत रहेगा।
संसद में इस मुद्दे पर गरमा-गरम बहस जारी है और यह आम चुनावों के लिए एक प्रमुख मुद्दा बन सकता है। माना जा रहा है कि यह विवाद विपक्ष और सरकार के बीच भविष्य की चुनावी रणनीतियों को भी प्रभावित कर सकता है।
इस मुद्दे पर संसद के भीतर विमर्श और बाहर जनता की चर्चा के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और चुनाव आयोग इस पर क्या कदम उठाते हैं। विपक्ष का मानना है कि इस मुद्दे का समाधान जल्दी से जल्दी होना चाहिए ताकि जनता का विश्वास चुनाव प्रक्रिया में बना रहे।
bhargav moparthi
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
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अखिलेश यादव की बात सुनकर दिल में जलता सवाल उठता है कि क्या हम वाकई में अपने लोकतंत्र को जोखिम में डाल रहे हैं? इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की सुरक्षा का दावा हमेशा के लिए सही नहीं हो सकता। पेपर बैलेट की वापसी से पारदर्शिता बढ़ेगी और eleitor के भरोसे को मजबूती मिलेगी। हमें इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा करनी चाहिए, ना कि सिर्फ शब्दों का खेल। चुनाव आयोग को जनता के सामने सभी तकनीकी विवरण खुलकर पेश करने चाहिए। आखिरकार, लोकतंत्र का मर्म ही भरोसा है।
समाज के मूलभूत सिद्धांतों को देखते हुए, चुनाव प्रक्रिया में ईवीएम की अविश्वसनीयता एक गंभीर नैतिक दुविधा उत्पन्न करती है। कई मामलों में तकनीकी गड़बड़ी से वोटों का फेरबदल संभव हो सकता है, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों को धक्का लगता है। इस कारण, पेपर बैलेट की ओर लौटना न केवल व्यावहारिक बल्कि नैतिक भी है। जो लोग इसे 'पुराना' कहते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि पारदर्शिता ही सर्वोपरि है। वर्तमान में ईवीएम को लेकर कई षड्यंत्र सिद्धांत फैल रहे हैं, जो जनता के मन में शंका भरते हैं। इस शंका को दूर करने के लिये हमें साक्ष्य-आधारित रिपोर्ट देखनी चाहिए, न कि केवल राजनैतिक बयान। सरकार को इस मुद्दे में धीरज नहीं दिखाना चाहिए, बल्कि ठोस कदम उठाने चाहिए। अंत में, एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये सभी को मिलकर सत्य की खोज करनी होगी।
अभी के दौर में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ज़रूरी है, पर सुरक्षा को लेकर सतर्क रहना भी बहुत जरूरी है 😊। ईवीएम अगर सही से काम न करे तो लोकतंत्र की नींव डगमगा सकती है। पेपर बैलेट की वापसी से लोगों का भरोसा फिर से कायम हो सकता है 📄। चुनाव आयोग को चाहिए कि वह सभी तकनीकी पहलुओं को पारदर्शी रूप से जनता के सामने रखे। आखिर, वोटर की आवाज़ सबसे ऊपर होनी चाहिए।
ईवीएम का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। पेपर बैलेट ही सबसे सुरक्षित विकल्प है। सभी को मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।
मैं मानती हूं कि वोटिंग प्रक्रिया में भरोसा होना चाहिए 😊। पेपर बैलेट की वापसी इस भरोसे को पुनः स्थापित कर सकती है।
देश की इज्ज़त को बचाने के लिये ईवीएम को तुरंत बंद करना चाहिए।
तकनीक का उपयोग फायदेमंद है, पर सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ईवीएम के मुद्दे पर खुले तौर पर चर्चा जरूरी है। पेपर बैलेट एक वैकल्पिक समाधान हो सकता है।
सच में, ए़वीएम की सुरक्षा पर सवाल उठाना लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के प्रति जागरूकता दर्शाता है। पेपर बैलेट का उपयोग करके हम पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों को बढ़ा सकते हैं। इसके साथ ही, चुनाव आयोग को सभी तकनीकी डिटेल्स को सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि जनता को पूर्ण जानकारी मिल सके। इस प्रक्रिया में विभिन्न विशेषज्ञों की राय भी शामिल होनी चाहिए। अंततः, हमें ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जो सभी वर्गों में विश्वास जगाए।
ईवीएम की सुरक्षा का बहाना रोज़ नया बनता है। असल में यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर रहा है। पेपर बैलेट ही भरोसेमंद है। हमें इसे अपनाना चाहिए।
संसद में गरमागरम बहस चल रही है! कोई कहता है ईवीएम फेल हो रहा है, तो कोई कहता है सब ठीक है! मैं तो कहूँगा, पेपर बैलेट की वापसी से सबकी नींद चिर जाएगी! चलिए, इस मुद्दे को हल्के में ना लें!
वास्तव में, चुनाव के इस महायुद्ध में ईवीएम एक भजक की तरह है-कभी चमके, कभी धुंधला। अगर हम पेपर बैलेट को फिर से अपनाएँ तो जनता का दिल भी खुश रहेगा और लोकतंत्र की धड़कन भी तेज़ होगी। तकनीकी परेशानियाँ तो बस अस्थायी हैं, पर भरोसा एक स्थायी संपत्ति है। इसलिए, हमें इस मुद्दे को हल्के में नहीं लेना चाहिए, बल्कि गहरी सोच के साथ समाधान तलाशना चाहिए। अंत में, एक मजबूत लोकतंत्र के निर्माण में हर आवाज़ कीमती है।
मैं देख रहा हूँ कि आपका लंबा तर्क काफी दमदार है, पर कुछ मुद्दों मेंऔर स्पष्टीकरण चाहिए। क्या आप बता सकते हैं कि ईवीएम में किस प्रकार की 'तकनीकी गड़बड़ी' हो सकती है? और पेपर बैलेट की लागत और समय सीमा को कैसे मैनेज करेंगे? इस बात का भी ज़िक्र नहीं किया गया कि चुनाव आयोग ने अब तक कौन‑कौन से सुधार लागू किए हैं। आपके विचार में क्या यह पर्याप्त है या हमें और गहरा निरीक्षण चाहिए? अंत में, एक पारदर्शी प्रक्रिया के लिए दोनों विकल्पों की तुलना जरूरी है।
आप सब ने इस मुद्दे पर बहुत कुछ कहा है, और मैं देख रहा हूँ कि बहस काफी सक्रिय है। पेपर बैलेट और ईवीएम दोनों के फायदे‑नुकसान को एक साथ देखना चाहिए। शायद एक हाइब्रिड सिस्टम भी काम कर सकता है, जहाँ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के साथ बैकटअप पेपर बैलेट हो। इस तरह से हम दोनों की सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकते हैं।
मैं थोड़ा शांत रहूँ तो भी वही मानता हूँ कि चुनाव में भरोसे की जरूरत है 😊। पेपर बैलेट की वापसी से जनता का विश्वास दुबारा बन सकता है।
आपके प्रश्नों का उत्तर देते हुए, हमें पहले यह स्पष्ट करना होगा कि ईवीएम की तकनीकी गड़बड़ी केवल सॉफ्टवेयर बग नहीं, बल्कि हार्डवेयर स्तर पर भी हो सकती है, जैसे कि माइक्रोप्रोसेसर की असामान्य रीसेट या अनधिकृत फर्मवेयर लोडिंग। ऐसी परिस्थितियों में वोटों की सटीकता पर विश्वास करना कठिन हो जाता है, क्योंकि डेटा को रीयल‑टाइम में बदलना संभव है। दूसरी ओर, पेपर बैलेट का सिद्धांत सादगी में ही शक्ति रखता है; कागज़ की मतपत्र को गढ़ा नहीं जा सकता, जब तक कि अत्यधिक भौतिक हेरफेर न किया जाए, जो कि व्यावहारिक रूप से कठिन है। हालांकि, पेपर बैलेट के भी कुछ operational challenges हैं, जैसे कि कागज़ की उपलब्धता, काउंसलिंग स्टेशनों की सुरक्षा, और मतपत्रों की गिनती में संभावित मानवीय त्रुटि। इन दोनों प्रणालियों की तुलना करते समय, हमें न केवल तकनीकी सुरक्षा बल्कि लागत‑प्रभावशीलता, समय‑सीमा, और पर्यावरणीय प्रभाव को भी ध्यान में रखना चाहिए।
उदाहरण के तौर पर, ईवीएम का उपयोग करने से मतगणना जल्दी होती है, जिससे चुनाव परिणाम जल्दी घोषित हो सकते हैं, जबकि पेपर बैलेट से गिनती में अधिक समय लगता है, लेकिन पारदर्शिता बढ़ती है। यदि हम एक हाइब्रिड मॉडल अपनाते हैं, जहाँ प्रत्येक मतदान केंद्र में ईवीएम के साथ एक बैक‑अप पेपर बैलेट रखी जाए, तो दोनों प्रणालियों के लाभ को मिलाया जा सकता है। इस तरह की व्यवस्था से यदि ईवीएम में कोई तकनीकी विफलता आती है, तो पेपर बैलेट से तुरंत पुनः गिनती संभव होगी।
इसके अलावा, चुनाव आयोग को निरंतर ऑडिट और विश्वसनीय तृतीय‑पक्षीय निरीक्षण की आवश्यकता है, ताकि दोनों प्रणालियों की निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके। स्वतंत्र निर्वाचन निरीक्षक एवं प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को मिलकर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए, जिसमें संभावित खामियों की पहचान और समाधान प्रस्तावित हों। अंत में, लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है जनता का विश्वास; चाहे वह ईवीएम हो या पेपर बैलेट, सभी उपाय इस विश्वास को सुदृढ़ करने के लिए ही होने चाहिए। इसलिए, एक संतुलित, पारदर्शी और बहु‑स्तरीय चुनाव प्रक्रिया ही उत्तरदायी और भरोसेमंद परिणाम दे सकती है।
यह मुद्दा बहुत ज़्यादा जटिल नहीं है, बस भरोसे की बात है। चाहे ईवीएम हो या पेपर, जनता को भरोसा चाहिए।
वर्तमान में हम एक टेक्निकल एन्क्रिप्शन फेल्योर के जोखिम में हैं, जहाँ ईवीएम का इंटेग्रिटी प्रोटोकॉल कमजोर हो सकता है। इस दृष्टिकोण से पेपर बैलेट एक रिडंडेंट मैकेनिज्म के रूप में कार्य करता है, जो फॉल्ट टॉलरेंस को बढ़ाता है। यदि हम हार्डवेयर‑लेयर सुरक्षा को अनदेखा करें, तो सिस्टम थ्रेट मॉडल पूरी तरह विफल हो सकता है। इसलिए, एक मल्टी‑लेयर वैलिडेशन फ्रेमवर्क अपनाना आवश्यक है।
मैं सभी दृष्टिकोणों की सराहना करता हूँ और मानता हूँ कि हम सब का लक्ष्य समान है-न्यायसंगत चुनाव। एक स्पष्ट और पारदर्शी प्रक्रिया ही जनता का भरोसा जीत सकती है। सभी पक्षों को मिलकर एक कार्यकारी मॉडल तैयार करना चाहिए।