छठ पूजा 2025 का आरंभ 25 अक्टूबर को नहाय खाय से, प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और नीतीश कुमार ने दिए शुभकामनाएँ
25 अक्टूबर, 2025 को सुबह के पहले किरणों के साथ बिहार के गंगा घाटों पर भक्तों का जमावड़ा देखने को मिला — नहाय खाय का रिवाज शुरू हो गया। ये वह पल था जब लाखों लोग नदियों में स्नान करके, सात्विक भोजन खाकर, एक ऐसे त्योहार की शुरुआत कर रहे थे जिसकी जड़ें वैदिक काल तक जाती हैं। छठ पूजा 2025 का चार दिवसीय अनुष्ठान बिहार, झारखंड और अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को बे एरिया, टेक्सास और न्यू जर्सी जैसे विदेशी समुदायों में भी शुरू हो गया। इस बार, प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी, अमित अनिलचंद्र शाह और नीतीश कुमार ने अपने-अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भक्तों को शुभकामनाएँ दीं। ये तीनों नेता अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों से हैं, लेकिन छठ के इस अवसर पर एक हुए।
छठ का अनुष्ठान: एक दिन एक अनुष्ठान
छठ पूजा का हर दिन एक अलग रस्म के साथ जुड़ा है। पहला दिन — नहाय खाय — जब भक्त स्वच्छता के लिए नदी में स्नान करते हैं और लौकी, चना दाल और चावल का भोजन करते हैं। दूसरा दिन — खर्णा — जब वे पानी भी नहीं पीते, शाम को गुड़-खीर और रोटी खाकर 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू कर देते हैं। तीसरा दिन — सांध्य अर्घ्य — जब सूरज ढलते ही भक्त पानी में खड़े होकर बांस के ट्रे में ठेकुआ, गन्ना और फल चढ़ाते हैं। आखिरी दिन — उषा अर्घ्य — सुबह के पहले किरणों में वही अर्घ्य, वही भजन, वही उम्मीद। ये चार दिन एक जीवन बदलने का सफर है।
विश्व के दूर देशों में भी छठ की धूम
ये त्योहार अब सिर्फ बिहार या झारखंड का नहीं रह गया। बे एरिया जैन एसोसिएशन (BJANA) फ्रेमोंट, कैलिफोर्निया में हर साल 50,000 से ज्यादा बिहारी अमेरिकियों के लिए छठ का आयोजन करता है। टेक्सास के राधा कृष्ण मंदिर ने अपनी ब्लॉग पर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय भी जारी किए — ताकि अमेरिका में रहने वाले भक्त अपने अर्घ्य को सही वक्त पर चढ़ा सकें। यहाँ तक कि यूके और गल्फ देशों में भी छठ के लिए बड़े-बड़े जुलूस निकलते हैं। इसकी वजह? बिहार के 1.2 करोड़ विदेशी नागरिक। ये लोग अपनी संस्कृति को बरकरार रखने के लिए ये रिवाज अपनाते हैं।
पर्यावरण और पारंपरिक शुद्धता: छठ का गुप्त नियम
छठ पूजा का एक अनोखा पहलू ये है कि यहाँ कोई प्लास्टिक नहीं, कोई रासायनिक चीनी नहीं। सारे प्रसाद को मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है, और चीनी के रूप में केवल खांडसारी (अनुप्रसारित गुड़) का इस्तेमाल होता है। इसके अलावा, अर्घ्य चढ़ाने के बाद भक्त अपने सारे सामान वापस ले लेते हैं — नदी को गंदा नहीं करने के लिए। ये नियम नीतीश कुमार की सरकार ने 2018 से बिहार में सख्ती से लागू किया है। आज ये एक नियम बन गया है, न कि एक सुझाव।
राजनीति और सांस्कृतिक एकता
यहाँ एक अजीब सी बात है — एक ऐसा त्योहार जहाँ प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री सभी एक साथ आते हैं। कोई नहीं बोलता कि ये चुनावी रणनीति है। शायद इसलिए क्योंकि छठ ऐसा त्योहार है जो राजनीति को छूता भी नहीं। ये एक आंतरिक शुद्धि का अनुष्ठान है। जब एक महिला नदी में खड़ी होकर सूरज को अर्घ्य देती है, तो उसके मन में कोई दल-भाषा नहीं होती। बस शुद्धता। बस आस्था। बस एक बेटी की खुशी, एक पति का स्वास्थ्य।
भविष्य क्या है?
BJANA ने सितंबर 2025 में अपने वॉलंटियर्स के लिए रजिस्ट्रेशन खोलने की घोषणा की है। ये वॉलंटियर अर्घ्य के सामान बनाने, घाटों की सफाई करने और बच्चों को रिवाज सिखाने में मदद करेंगे। इस बार का त्योहार विशेष रूप से युवाओं के लिए महत्वपूर्ण है — क्योंकि अब ये त्योहार सिर्फ बुजुर्गों का नहीं, बल्कि डिजिटल नेशन के युवाओं का भी है। जो लोग ट्विटर पर ट्रेंड करते हैं, वे अब फेसबुक पर छठ के अर्घ्य के वीडियो शेयर कर रहे हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 5000 साल पुरानी आस्था
छठ पूजा का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। यहाँ तक कि लोग मानते हैं कि राम-सीता ने अपने वनवास के दौरान भी छठ का पालन किया था। यह त्योहार कभी राजमहल में नहीं, हमेशा नदी किनारे हुआ। इसकी शुद्धता इसे अन्य त्योहारों से अलग करती है। यूनेस्को ने 2020 से इसे अदृश्य सांस्कृतिक विरासत के लिए विचार किया है — और अब ये अनुरोध बहुत गंभीर है। क्योंकि जब एक संस्कृति अपने आंतरिक शुद्धि के लिए नदी को बचाती है, तो वह संस्कृति बच जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
छठ पूजा के दौरान नहाय खाय क्यों किया जाता है?
नहाय खाय छठ का पहला और सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसमें भक्त नदी में स्नान करके शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त करते हैं। इसके बाद लौकी, चना दाल और चावल का सात्विक भोजन किया जाता है, जो व्रत की शुरुआत है। यह रिवाज शरीर को शुद्ध करने के साथ-साथ दिमाग को शांत करने का भी साधन है।
अमेरिका में छठ का आयोजन कैसे होता है?
बे एरिया जैन एसोसिएशन जैसे संगठन फ्रेमोंट और टेक्सास में नदी के बराबर जलाशयों का उपयोग करके छठ का आयोजन करते हैं। राधा कृष्ण मंदिर जैसे स्थानों पर सूर्योदय-सूर्यास्त के समय और अर्घ्य की विधि बताई जाती है। यहाँ भी सभी प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में बनाए जाते हैं और वॉलंटियर्स द्वारा सफाई की जाती है।
छठ पूजा को यूनेस्को क्यों देख रहा है?
यूनेस्को छठ को इसलिए देख रहा है क्योंकि यह एक ऐसा त्योहार है जो प्राकृतिक संसाधनों (नदी) के साथ गहरा संबंध बनाता है, बिना किसी रासायनिक या प्लास्टिक के। इसकी शुद्धता, निर्जला व्रत और पर्यावरण संरक्षण की प्रथाएँ अन्य संस्कृतियों के लिए एक उदाहरण हैं।
छठ के दौरान निर्जला व्रत क्यों किया जाता है?
खर्णा के बाद 36 घंटे तक पानी और भोजन न लेना भक्ति की गहराई और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है। यह व्रत शरीर को शुद्ध करने के साथ-साथ मन को शांत करता है। यह एक ऐसा अनुभव है जो आधुनिक जीवन की व्यस्तता से दूर एक शांत अंतर्मन की ओर ले जाता है।
छठ पूजा के लिए विदेशी भारतीय कितने लोग शामिल होते हैं?
दुनिया भर में लगभग 1.2 करोड़ बिहारी विदेशी नागरिक हैं, जिनमें से लगभग 80% छठ के अनुष्ठान में शामिल होते हैं। अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में ही 50,000 से अधिक लोग इस त्योहार को बड़े उत्साह से मनाते हैं।
छठ पूजा का आर्थिक प्रभाव क्या है?
हर परिवार छठ के लिए लगभग ₹5,000–₹10,000 खर्च करता है — ज्यादातर प्रसाद, मिट्टी के बर्तन और गन्ना के लिए। लेकिन ये खर्च सामुदायिक है — BJANA जैसे संगठन शुल्क नहीं लेते, बल्कि दान से अनुष्ठान चलाते हैं। यह एक अर्थव्यवस्था है जो लाभ के बजाय साझेदारी पर आधारित है।
bhargav moparthi
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
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नहाय खाय बस शुरुआत है, बाकी चार दिन तो असली तपस्या है।
अमेरिका में छठ का आयोजन देखकर लगा जैसे हमारी संस्कृति दुनिया को दे रही है एक अलग तरह की शुद्धता। मिट्टी के बर्तन, खांडसारी, बिना प्लास्टिक का अर्घ्य - ये सब आधुनिक दुनिया के लिए एक बड़ा संदेश है।
मैंने पिछले साल बिहार में छठ मनाया था... नदी किनारे खड़ी होकर सूरज को अर्घ्य देते समय लगा जैसे सारा गुस्सा, तनाव, बेचैनी बह गया। ये त्योहार किसी राजनीति का नहीं, बल्कि हर इंसान के अंदर के बच्चे का है। 🙏
यूनेस्को को लगता है कि यह एक 'अदृश्य सांस्कृतिक विरासत' है? अरे भाई, ये तो एक बहुत ही विकृत, प्राचीन, अनुपयुक्त और आधुनिक विश्व के लिए असंगत रिवाज है - जिसे बचाने की जरूरत नहीं, बल्कि समझने की है। ये निर्जला व्रत, ये नदी में खड़े होना... ये सब एक तरह का आध्यात्मिक बहिष्कार है।
मेरी बहन न्यू जर्सी में है, उसने बताया कि वहां के बच्चे अब छठ के गीत गा रहे हैं। उनके घरों में भी मिट्टी के बर्तन लगे हैं। ये न सिर्फ परंपरा बच रही है... ये बदल रही है।
लोग कहते हैं छठ राजनीति से अलग है... पर अगर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री सब एक साथ शुभकामनाएं दे रहे हैं, तो ये तो बस एक बड़ा सा चुनावी फोटो शूट है। 😒
अरे ये सब बकवास है! नदी में खड़े होकर अर्घ्य देने से क्या होगा? बेटी का स्वास्थ्य तो डॉक्टर ठीक करेगा! और गुड़ के बजाय चीनी डाल दो ना! 😤
यूनेस्को छठ को बचाना चाहता है? ये तो सिर्फ एक बड़ा धोखा है! असल में ये एक ऐसी चाल है जिससे बिहार की संस्कृति को राष्ट्रीय प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है! और नीतीश कुमार ने 2018 में प्लास्टिक पर रोक लगाई? ये तो बस अपनी तस्वीरें बढ़ाने के लिए! लोग नहीं जानते कि असल में क्या चल रहा है!
यहाँ एक बात ध्यान देने लायक है: छठ के दौरान निर्जला व्रत का उद्देश्य आत्म-नियंत्रण है, लेकिन आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार, लंबे समय तक पानी न पीने से अवसाद, उत्तेजना और असंतुलित हार्मोन लेवल हो सकते हैं। यह रिवाज शायद ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन आज के वैज्ञानिक ज्ञान के साथ इसे अनुकूलित किया जाना चाहिए।
क्या आपने कभी सोचा कि छठ का सूर्य असल में एक एलियन बैकग्राउंड सिग्नल है? जो नदी के पानी में छिपा हुआ है? ये सब जो हो रहा है... ये एक बड़ा वैज्ञानिक एक्सपेरिमेंट है जिसे हम नहीं समझ पा रहे। और हाँ... गुड़ भी एक ट्रैकर है।
मैं अमेरिका में रहता हूँ... यहाँ हम छठ पर बड़े बड़े लोगों को नहीं देखते, बल्कि छोटे बच्चों को देखते हैं जो अर्घ्य चढ़ाते हैं। वो भी अपने घर के बरामदे में। शायद यही असली छठ है - जो बिना शोर के, बिना फोटो के, बिना ट्वीट के होती है। 🌅
और फिर भी कोई नहीं बोलता कि ये सब एक धार्मिक नाटक है... जिसमें नेता अपने चेहरे को बचाते हैं, और लोग अपने दिल को बचाने की कोशिश करते हैं। बहुत सुंदर है... बहुत दर्दनाक है।
छठ का आयोजन अमेरिका में? ये तो अब एक बड़ा भारतीय नेशनलिस्ट प्रचार है। यूनेस्को के लिए ये एक तरह का 'सांस्कृतिक आक्रमण' है। और गुड़ का इस्तेमाल? वो तो बस एक बड़ा शास्त्रीय धोखा है - असल में ये सब एक गुप्त आयुर्वेदिक एजेंसी का नेटवर्क है जो जनता को नियंत्रित कर रही है।