
DC vs GT: 10 विकेट से करारी हार के बाद अक्षर पटेल ने पावरप्ले गेंदबाज़ी-फील्डिंग पर उठाए तीखे सवाल
10 विकेट की चोट: दिल्ली की दीवार ढही, अक्षर का सख्त संदेश
दिल्ली में 199/3 अक्सर जीत दिलाता है, लेकिन इस रात गुजरात टाइटंस ने स्क्रिप्ट उलट दी। अरुण जेटली स्टेडियम में शुबमन गिल और साई सुदर्शन की बेहतरीन साझेदारी ने लक्ष्य को यूं समेटा कि दिल्ली कैपिटल्स एक विकेट भी नहीं तोड़ पाई। नतीजा—10 विकेट से हार, और अंकतालिका में झटका। 12 मैचों के बाद 13 अंक और नेट रन रेट +0.260 के साथ दिल्ली पांचवें पायदान पर खिसक गई है।
पोस्ट-मैच पर दिल्ली के कप्तान अक्षर पटेल का गुस्सा छिपा नहीं। उन्होंने साफ कहा—“पावरप्ले में गेंदबाज़ी और फील्डिंग बेहतर करनी होगी।” ये सीधी बात उस रात की सबसे बड़ी कमजोरी पर उंगली रखती है। उन्होंने GT के बल्लेबाज़ों को श्रेय भी दिया—“उन्होंने जिस तरह बल्लेबाज़ी की, कमाल था। दूसरी पारी में विकेट बेहतर हो गया। गेंद बैट पर अच्छी आ रही थी, इसलिए वे शुरुआत से सेट हो गए।”
दिल्ली की बैटिंग ने काम किया था। केएल राहुल ने पारी को थामे रखा, अबिषेक पोरेल ने 19 गेंद में 30 (एक चौका, तीन छक्के) खेलकर टोन सेट कर दिया। अक्षर ने 16 गेंदों पर 25 जोड़े और ट्रिस्टन स्टब्स ने आखिर में 10 गेंद पर नाबाद 21 की तेज़ कैमियो दी। स्कोरबोर्ड 199/3 पर रुका तो स्टैंड में बैठे दर्शकों को उम्मीद थी कि ये स्कोर डिफेंड होगा। लेकिन दूसरी पारी में हालात बदल गए—ओस आई, गेंद skid करने लगी, और GT के ओपनरों ने एक भी दरार नहीं छोड़ी।
DC vs GT का ये मुकाबला एक और वजह से भारी पड़ा—मानसिक असर। 10 विकेट की हार कम देखने मिलती है और जब घर में ऐसा हो, तो टीम का कॉन्फिडेंस हिलता है। अक्षर ने यह भी माना कि जब विपक्ष शुरुआती विकेट नहीं खोता, तो रफ़्तार बनती जाती है और दबाव उलटा पड़ता है।
अब समीकरण और सीख: पावरप्ले की मरम्मत, फील्डिंग का स्तर, और दो ‘फाइनल’
तस्वीर साफ है—दिल्ली को अब बाकी दो मैच जीतने होंगे। 21 मई को मुंबई के खिलाफ और 24 मई को पंजाब से भिड़ंत। दोनों जीतते हैं तो 17 अंक तक पहुंचेंगे और तब टॉप-4 की खिड़की खुली रहेगी। नेट रन रेट का रोल बड़ा हो सकता है, इसलिए सिर्फ जीत नहीं, ठोस जीत चाहिए।
दिल्ली की राह में असली अड़चन वही है जिसे कप्तान ने निशाना बनाया—पहले छह ओवर। गेंदबाज़ों की लाइन-लेंथ लगातार मिस हुई दिखी। नई गेंद से या तो बेहद फुल हुई, या फिर शॉर्ट पर बहक गई, और बीच का ‘हिट अ गुड लेंथ’ एरिया छूटा। फील्ड सेटिंग भी उतनी आक्रामक नहीं लगी कि दबाव बनता। जब बल्लेबाज़ बिना रिस्क स्ट्राइक रोटेट कर लेते हैं और बाउंड्री मिलती रहती है, तो 200 भी छोटा दिखने लगता है।
फील्डिंग—ये वह हिस्सा है जहां दिल्ली को शार्प होना ही होगा। टाइटAngles पर कट-ऑफ, स्लाइडिंग स्टॉप और बाउंड्री-राइडिंग में एक-एक अतिरिक्त रन भी मैच की दिशा मोड़ देता है। इस मैच में अक्षर की बात से यही संकेत मिला कि ग्राउंड फील्डिंग और पावरप्ले के कैचिंग पोज़िशन पर टीम का standard नीचे गया। ये सिर्फ एफ़र्ट नहीं, तैयारी का सवाल भी है—प्री-मैच ड्रिल्स, थ्रो की एक्युरेसी, और सही एंगल चुनना।
मिड ओवर्स में विविधता की कमी भी दिखी। जब सतह दूसरी पारी में बेहतर हो, तो सिर्फ pace पर भरोसा काम नहीं करता। बदलाव—कटर, स्लोअर बाउंसर, और स्टंप-टू-स्टंप लाइन— इनके साथ लंबा स्पेल चाहिए था ताकि गलती निकलवाई जा सके। डेथ में विकेट ढूंढने की कोशिश भी फीकी रही। विकेट न मिलें तो 10-12 रन प्रति ओवर सामान्य हो जाते हैं, और पीछा आसान दिखता है।
अब जरा कंडीशन्स की बात। मई की रात में दिल्ली की पिच अक्सर ट्रू रहती है और छोटी सीमाएं बल्लेबाज़ी के पक्ष में जाती हैं। ओस आए तो स्पिन की पकड़ ढीली होती है और सीमर्स की लेंथ पर ज़रा सी चूक बाउंड्री बन जाती है। इसमें टॉस का फैक्टर है, पर उससे बड़ी बात है—योजना। अगर टॉस आपके साथ नहीं है, तो भी आपको पावरप्ले में stump-to-stump और हार्ड लेंथ से शुरुआत करनी होगी, इन-फील्ड को टाइट रखना होगा और ‘नए-पुराने’ गेंद की ट्रांज़िशन पर रोलिंग बदलाव समय पर करना होगा।
बैटिंग से सीखें? पॉज़िटिव काफी हैं। राहुल का एंकर रोल टीम को गहराई तक ले जाता है, पोरेल का इंटेंट पावरप्ले में टेम्पो देता है, और स्टब्स का फिनिशिंग टच डेथ ओवर्स में रन-रेट को उछाल देता है। अगर टॉप-ऑर्डर से एक और 30-35 की तेज़ पारी जुड़ जाए, तो 200 का स्कोर और ‘कंट्रोल्ड’ लगता है। इम्पैक्ट सब्स्टीट्यूट का इस्तेमाल भी यहां गेम-चेंजर हो सकता है—किस ओवर में अतिरिक्त बल्लेबाज़ भेजना है या अतिरिक्त पेस/स्पिन जोड़ना है, ये मैच-अप से तय करें।
टीम मैनेजमेंट के लिए चेकलिस्ट तैयार है:
- पावरप्ले गेंदबाज़ी: नई गेंद से ‘गुड लेंथ’ पर टिके रहना, ऑफ-स्टंप के बाहर की वाइड्स कम करना, और दो-तीन ओवरों में अंदर-बाहर का ट्रैप बिठाना।
- फील्डिंग मानक: इनर-सर्कल में रिंग-फील्डिंग टाइट, थ्रो की डायरेक्ट-हिट प्रैक्टिस, और बाउंड्री-प्रोटेक्शन की स्पष्ट जिम्मेदारी।
- विविधता: स्पेल में कटर और स्लोअर की फ्रिक्वेंसी बढ़ाना, खासकर तब जब सतह बैटिंग-फ्रेंडली लगे।
- ओस मैनेजमेंट: गेंद को सूखा रखने की तैयारी, बॉल-चेंज अपील का टाइमिंग, और स्पिनरों के लिए फील्ड जो सिंगल रोके।
- रणनीति का संचार: ओवर-दर-ओवर प्लानिंग—अगले 12 गेंद में ‘कौन’, ‘कहां’, ‘किस लेंथ’ से—ये clarity हर बॉलर तक पहुंचे।
दिल्ली की होम रिकॉर्ड इस सीजन उलझन भरी रही—सिर्फ एक जीत (वो भी सुपर ओवर से) और चार हार। घर की पिच को पढ़ना और उसके हिसाब से कॉम्बिनेशन चुनना, यहीं टीम पिछड़ी। एक अतिरिक्त स्पिनर या एक और हार्ड-लेंथ पेसर? ये सवाल अब सिर्फ चर्चा नहीं, अगले मैच की रणनीति का केंद्र होना चाहिए।
गुजरात की बल्लेबाज़ी को क्रेडिट कम नहीं। गिल और सुदर्शन ने रिस्क-फ्री क्रिकेट खेलते हुए गैप्स चुने, ओवरपिच्ड पर ड्राइव, शॉर्ट पर पुल, और रोटेशन से दबाव हटाया। वे 10वें ओवर तक मैच को ‘अंडर कंट्रोल’ मोड में ले आए थे और उसके बाद दिल्ली के पास विकेट के मौके बहुत कम बचे। यही वो ब्लूप्रिंट है, जिसे दिल्ली को रिवर्स करना होगा—शुरू में ही चुभने वाले ओवर, जहां बल्लेबाज़ को शॉट के लिए मजबूर होना पड़े।
ड्रेसिंग रूम का मूड? सख्त लेकिन साफ। अक्षर की भाषा बता गई कि अब बहाने नहीं चलेंगे। “कुछ भी असंभव नहीं। अगले दो मैच जीत लिए, तो कुछ भी हो सकता है”—कप्तान की ये लाइन टीम के लिए टेम्पलेट होनी चाहिए। बेशक, अंकतालिका अनुमति देती है। शर्त यही है कि पावरप्ले में नियंत्रण, फील्डिंग में धार, और डेथ में विकेट—तीनों एक साथ क्लिक करें।
अगले पांच दिन दिल्ली के लिए असल परीक्षा हैं। रिकवरी, रोल-क्लैरिटी और मैच-अप्स पर बारीकी—यही फर्क पैदा करेंगे। मुंबई और पंजाब के खिलाफ आपको शुरुआती ओवरों में बढ़त बनानी ही होगी। नेट रन रेट को ध्यान में रखते हुए, अगर मौका मिले तो जीत का मार्जिन भी बढ़ाना होगा। दिल्ली के पास बैटिंग गहराई है, फिनिशिंग टच है—अब नई गेंद से ‘टोन’ सेट करना है।
स्टैंड्स में बैठे फैन्स निराश हैं, पर कहानी खत्म नहीं हुई। प्लेऑफ की खिड़की खुली है, बस हैंडल मजबूत पकड़ना होगा। मैदान पर पहली गेंद से आखिरी तक वही ऊर्जा दिखी, तो ये टीम वहीं लौट सकती है जहां से सीजन शुरू किया था—जबरदस्त रफ़्तार के साथ।
bhargav moparthi
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