ग्रे मार्केट प्रीमियम: क्या है और क्यों महत्व रखता है

जब आप ग्रे मार्केट प्रीमियम, IPO के पहले दिन ट्रेडिंग में दिखने वाला अतिरिक्त कीमत. इसे अक्सर GMP कहा जाता है, यह निवेशकों की उन्मुखी भावना को प्रतिबिंबित करता है। साथ ही, IPO, प्राथमिक सार्वजनिक प्रस्ताव प्रक्रिया का हिस्सा है, और शेयर बाजार, सिक्योरिटीज़ की खरीद‑बेच का मंच में इसका प्रभाव सीधा दिखता है। ग्रे मार्केट प्रीमियम, शेयर की बुक वैल्यू और ऑफरिंग प्राइस के बीच अंतर को दर्शाते हुए, बाजार की तरलता, डिमांड‑सप्लाई और मनी फ्लो को भी उजागर करता है।

ग्रे मार्केट प्रीमियम के प्रमुख पहलू

गणना की बात करें तो ग्रे मार्केट प्रीमियम = (ग्रे मार्केट ट्रेडिंग प्राइस – बुक वैल्यू) x 100 / बुक वैल्यू। इस फॉर्मूला में बुक वैल्यू कंपनी की वित्तीय रिपोर्ट में बताई गई शुद्ध संपत्ति को दर्शाती है, जबकि ग्रे मार्केट ट्रेडिंग प्राइस ऑफरिंग के एक या दो दिन पहले के लेन‑देनों से आती है। यदि प्रीमियम सकारात्मक है, तो निवेशकों की शुरुआती आशावाद स्पष्ट हो जाता है; नकारात्मक GMP संकेत करता है कि बाजार ने कंपनी को ओवरवैल्यूड समझा। 2025 में भारत के IPO बाजार ने $5 बिलियन का रिकॉर्ड तोड़ा, और कई बड़े ऑफरिंग में अत्यधिक ग्रे मार्केट प्रीमियम देखी गई, जिससे निवेशकों की तीव्र रुचि स्पष्ट हुई।

ग्रे मार्केट प्रीमियम केवल एक संख्या नहीं है, यह कई कारकों का प्रभावी मिलाप है: अधिभार, कंपनी की उद्योग स्थिति, प्रबंधन टीम की विश्वसनीयता, तथा मौसमी ट्रेंड। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी टेक स्टार्ट‑अप की तकनीकी क्षमता उच्च मानी जाती है, तो प्रीमियम अक्सर 20‑30 % तक पहुँच जाता है। दूसरी ओर, पारंपरिक सेक्टरों जैसे एंटी‑ट्रस्ट या डिपॉज़िटरी में कम प्रीमियम देखा जाता है। इस वजह से GMP को पढ़ते समय आपको कंपनी की व्यावसायिक मॉडल और प्रतिस्पर्धी माहौल दोनों को समझना जरूरी है।

निवेश रणनीति में ग्रे मार्केट प्रीमियम दो मुख्य तरीकों से काम आता है। पहली, यह शुरुआती कीमत तय करने में मदद करता है—यदि प्रीमियम बहुत अधिक है, तो कई निवेशक प्राथमिक बुकिंग छोड़ देते हैं और “क्लोज़‑ऑफ़” में जुड़ते हैं। दूसरी, प्रीमियम की दिशा भविष्य के कीमतों का संकेत देती है; लगातार बढ़ता GMP यह बताता है कि शॉर्ट‑टर्म में शेयर की कीमतें ऊपर जा सकती हैं, जबकि गिरता GMP उलट संकेत दे सकता है। इस तरह की जानकारी को आप प्लेसमेंट ब्रोकर, फ़िनटेक एपीआई या बाजार विश्लेषकों के रिपोर्ट से ले सकते हैं।

जब आप प्रीमियम को जोखिम प्रबंधन के साथ जोड़ते हैं, तो सही टाइमिंग और पोर्टफ़ोलियो डिस्ट्रिब्यूशन अहम हो जाती है। यदि आप हाई‑ग्रेसिंग GMP वाले IPO में निवेश कर रहे हैं, तो थर्ड‑पार्टी रिसर्च द्वारा बताई गई “इंट्रो‑ड्रॉव” संभावना को ध्यान में रखें। उल्टा, लो‑डिमांड वाले IPO में कम प्रीमियम मिलने पर आपको फ़्लिप‑साइड रिस्क कम करने के लिए वैकल्पिक एसेट क्लासेज़ में एलीवेट करना चाहिए।

ग्रे मार्केट प्रीमियम की वैधता को कई नियामक संस्थाएँ भी मॉनिटर करती हैं। भारत में सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड (SEBI) ने 2020 के बाद ग्रे मार्केट ट्रांसफ़र को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए विशेष दिशानिर्देश जारी किए हैं। इन नियमों के तहत ब्रोकरों को ट्रेडिंग वॉल्यूम और प्रीमियम के डेटा को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करने की आवश्यकता है, जिससे निवेशकों को सूचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। इस पारदर्शिता के चलते 2025 में कई बड़े वीसी‑बैक्ड स्टार्ट‑अप्स ने ग्रे मार्केट प्रीमियम को अपने वैल्युएशन का एक प्रमुख संकेतक माना।

संक्षेप में, ग्रे मार्केट प्रीमियम सिर्फ एक अंक नहीं, बल्कि IPO की शुरुआती धड़कन है। यह कीमत‑से‑बाजार की अंतरक्रिया, निवेशक भावना और नियामक पारदर्शिता को एक साथ जोड़ता है। नीचे आप देखेंगे कि हमारे संग्रह में कौन‑कौन से लेख इस विषय को गहराई से उजागर करते हैं—भले ही आप एक पहली बार निवेशक हों या एक अनुभवी ट्रेडर, यहाँ से आप फायदेमंद इनसाइट्स ले सकते हैं।

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