मणिपुर सरकार से समर्थन वापसी: एनपीपी का आरोप - सरकार ने विफल रही संकट सुलझाने में
एनपीपी की समर्थन वापसी और मणिपुर का राजनीतिक संकट
उत्तर पूर्वी भारत के मणिपुर राज्य में एक बड़ा राजनीतिक परिवर्तन हुआ, जब नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी), जिसने अब तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलकर सरकार बना रखी थी, ने अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा की। यह निर्णय एनपीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा द्वारा एक पत्र के माध्यम से भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को सूचित किया गया। पत्र में संगमा ने मणिपुर में बिगड़ती कानून और व्यवस्था की स्थिति पर गहरी चिंता जताई और आरोप लगाया कि सरकार ने कई मासूम जीवन खोने वाली और लोगों को अत्यधिक परेशान करने वाली कुकी और मैतेई समुदायों के बीच हिंसा को रोकने में विफल रही।
राजनीतिक ताकत और स्थिति का अवलोकन
मणिपुर विधानसभा में एनपीपी के सात विधायक हैं, जबकि भाजपा के पास अकेले 37 सीटें हैं। साथ ही भाजपा को नागा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) के पांच विधायक, जेडीयू के एक विधायक और तीन स्वतंत्र विधायकों का समर्थन प्राप्त है। एनपीपी के समर्थन की वापसी सीधे तौर पर सरकार के बहुमत को खतरा नहीं पहुंचाती, लेकिन यह निश्चित रूप से राज्य की राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन लेकर आई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम बीजेपी और एनपीपी के बीच भीतरघात का संकेत है और असंतोष की बढ़ती दरारें दिखाता है।
हिंसा के ताज़ा मामले और सुरक्षा व्यवस्था
इसी बीच मणिपुर में नवम्बर 11 को उग्रवादियों द्वारा अपहृत किए गए महिलाओं और बच्चों के छह शवों की बरामदगी ने राज्य में नए सिरे से हिंसा को जन्म दिया। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की कि राज्य में शांति बहाल किए जाने के लिए केंद्र सरकार की प्राथमिकता है। शांति बहाली के प्रयासों में तेज़ी लाने के उद्देश्य से उन्होंने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानिदेशक अनिश दयाल सिंह को इम्फाल भेजा है।
भविष्य की गतिविधियां और संभावित समाधान
इस मामले पर केंद्र और राज्य नेताओं के साथ बैठाकें हुई हैं, और गृह मंत्री शाह जल्द ही इसका फिर से समीक्षा करेंगे। राज्य में शांति और स्थिरता की स्थापना के लिए सरकार कठोर उपायों पर विचार कर रही है। इस कठिन समय में मणिपुर के जाने दाखिले क्षमताओं और नेतृत्व के गुणों का बड़ा इम्तिहान है। जहां मणिपुर कांग्रेस अध्यक्ष केशम मेघचंद्र सिंह ने भी यह कह दिया है कि यदि लोग इसे बेहतर पाते हैं तो वह अपने विधायक पद से इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं। उनका यह बयान राजनीतिक हलकों में हलचल मचाने वाला है और राज्य की स्थिति के प्रति लोगों के गहरे असंतोष को दर्शाता है। वहीं राज्य में हिंसा और अव्यवस्था के बीच, मणिपुर की जनता उम्मीद करती है कि उनके नेता जल्द से जल्द शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में सार्थक कदम उठाएंगे।
मणिपुर के मौजूदा राजनीतिक हालात केवल एक राज्य का संकट नहीं है, बल्कि यह एक संकेत है कि देश में क्षेत्रीय राजनीति भी बदलती परिस्थितियों के अनुरूप अपनी गति को कितनी जल्दी स्वीकार कर सकती है। राज्य में हिंसा, राजनीतिक अस्थिरता, और आम जनता की तकलीफों ने केंद्र को भी अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। नया तरीका और समाधान ही नई उम्मीद का संचार कर सकते हैं।
Veeran Khatri
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
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