
मुंबई मोनोरेल ठप: भारी बारिश में घंटों फंसे 800 यात्री, तीन घंटे चला रेस्क्यू
रिपोर्ट: भार्गव
बारिश ने मुंबई की रफ्तार फिर रोक दी। 19 अगस्त की शाम, दो अलग-अलग ट्रैकों पर मोनोरेल के डिब्बे हवा में ठिठक गए और करीब 800 लोग बिना रोशनी-एसी के कैद जैसे हालात में फंस गए। तीन घंटे तक चला हाई-रिस्क ऑपरेशन, स्नॉर्कल और टर्न टेबल लैडर के सहारे एक-एक यात्री को नीचे उतारा गया। शहर में 24 घंटे में 300 मिमी पानी गिरा, हार्बर लाइन बंद हुई, और भीड़ का दबाव मोनोरेल पर टूट पड़ा—यहीं से गड़बड़ शुरु हुई।
क्या-क्या हुआ और कब
शाम 6:15 बजे पहला बड़ा झटका लगा। चेेम्बूर और भक्ति पार्क स्टेशनों के बीच चल रही मुंबई मोनोरेल की एक रैक अचानक ठप हो गई। पावर सप्लाई फेल हुई तो कर्व पर चलते-चलते इमरजेंसी ब्रेक सक्रिय हो गया। ट्रेन में 582 लोग सवार थे। अंदर एसी और लाइट दोनों बंद, हवा की कमी और घबराहट—कुछ यात्रियों ने सांस लेने के लिए खिड़कियां तोड़ने तक की कोशिश की।
इसी दौरान वडाला और आचार्य अत्रे स्टेशनों के बीच दूसरी ट्रेन भी रुक गई। इसमें 200 से अधिक लोग फंस गए। दोनों जगह डिब्बे ऊंचाई पर, नीचे पानी से भरी सड़कों पर तेज बारिश, और ऊपर बंद केबिन—रेस्क्यू मुश्किल था, पर टीमों ने समय नहीं गंवाया।
यात्रियों ने बीएमसी की इमरजेंसी हेल्पलाइन 1916 पर कॉल किए। मुंबई फायर ब्रिगेड की तीन स्नॉर्कल और टर्न टेबल लैडर मौके पर पहुंचीं। एक-एक डिब्बे तक पहुंच बनाकर यात्रियों को हार्नेस और सीढ़ियों से उतारा गया। पहले ट्रेन से छह लोगों को घुटन की शिकायत हुई—मौके पर प्राथमिक इलाज मिला और उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। दूसरी ट्रेन से चार यात्रियों को एहतियातन अस्पताल भेजा गया।
करीब 9:50 बजे तक दोनों लोकेशनों से सभी यात्रियों को सुरक्षित निकाल लिया गया। इस बीच सोशल मीडिया पर ऊंचाई पर अटकी ट्रेनों के वीडियो वायरल हुए, और लोग जानना चाह रहे थे कि आखिर गलती कहां हुई।
जवाब का पहला हिस्सा सामने भी आ गया। एमएमआरडीए के संयुक्त आयुक्त अस्तिक पांडे ने कहा कि मोनोरेल रैक की वहन क्षमता 109 मीट्रिक टन है, लेकिन असामान्य भीड़ के कारण लोड उससे ऊपर चला गया। क्यों? क्योंकि शहर के हार्बर लाइन लोकल ट्रेनों की सेवाएं जलभराव की वजह से बंद थीं और हजारों लोग मोनोरेल स्टेशनों पर उमड़ पड़े। यही ओवरलोडिंग पावर ड्रॉ को अस्थिर करती गई और अंत में पावर सप्लाई ट्रिप कर गई।
डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने भी माना कि हार्बर लाइन के बंद होने के बाद यात्रियों का भारी दबाव मोनोरेल पर शिफ्ट हुआ। कर्व पर पावर फेलियर के साथ ही इमरजेंसी ब्रेक लगा तो रैक ने खुद को लॉक कर लिया—इसके बाद ट्रेन खुद से आगे-पीछे नहीं खिसक सकती।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एमएमआरडीए, नगर आयुक्त, पुलिस और सभी एजेंसियों से लगातार संपर्क में रहकर स्थिति पर नजर रखी। उन्होंने लोगों से घबराने के बजाय शांत रहने की अपील की और व्यापक जांच के आदेश दिए। नगर आयुक्त भूषण गगरानी ने यात्री संख्या की पुष्टि की और एजेंसियों के बीच समन्वय संभाला। महा मुंबई मेट्रो ऑपरेशन कॉर्पोरेशन ने पावर सप्लाई समस्या स्वीकार करते हुए सर्विस और मेंटेनेंस टीमों को दुरुस्ती में लगाया।
अब सवाल और आगे की राह
सबसे अहम सवाल—क्या ओवरलोडिंग रोकने के लिए मौजूद सिस्टम पर्याप्त हैं? सामान्य तौर पर शहरी रेल प्रणालियां लोड सेंसर, सॉफ्ट लिमिट (चेतावनी) और हार्ड कट-ऑफ (लोड पार होते ही दरवाजे बंद न होना/ट्रेन न चलना) जैसे गार्डरेल्स रखती हैं। अगर भीड़ 109 मीट्रिक टन से ऊपर गई, तो या तो सेंसर ने समय पर अलर्ट नहीं दिया, या स्टेशन पर भीड़ प्रबंधन विफल रहा। जांच को यह साफ करना होगा कि किस बिंदु पर फेलियर हुआ—प्लेटफॉर्म मैनुअल चेक, ट्रेन कंट्रोल लॉजिक, या पावर सप्लाई की प्रोटेक्शन सेटिंग्स।
दूसरा, पावर फेलियर के बाद लाइफ-सपोर्ट कितनी देर चलना चाहिए? बैटरी बैकअप से वेंटिलेशन और केबिन लाइटिंग को कम से कम 30–60 मिनट तक सुरक्षित रखना कई प्रणालियों में बेसलाइन माना जाता है। यहां यात्रियों को घुटन महसूस हुई, यानी वेंटिलेशन बैकअप, एयर-इनटेक या एयर-रिसर्क्युलेशन में कमी रही। इमरजेंसी पीए सिस्टम और इंटरकॉम से लगातार जानकारी मिलती रहती तो घबराहट कम होती।
तीसरा, भीड़ प्रबंधन। हार्बर लाइन बंद होते ही मोनोरेल पर लोड बढ़ना तय था। ऐसी स्थिति में स्टेशन-वार ‘एंट्री मीटरिंग’ (नियंत्रित प्रवेश), प्लेटफॉर्म पर लाइव डिस्प्ले से वास्तविक प्रतीक्षा समय, और वैकल्पिक बस सेवाओं का तुरंत प्रावधान असरदार रहता है। बीईएसटी के साथ प्री-अग्रीड ‘ब्रिज बस’ रूट एक्टिवेट करना, हेडवे घटाकर अतिरिक्त रैक उतारना और भीड़ को पड़ोसी स्टेशनों में बांटना—ये कदम भीड़ को क्षमता के भीतर रख सकते थे।
चौथा, रेस्क्यू की तैयारी। इस ऑपरेशन में स्नॉर्कल और टर्न टेबल लैडर का उपयोग सफल रहा, लेकिन तीन घंटे लंबा समय बताता है कि एरियल एक्सेस हर लोकेशन पर आसान नहीं है। ऊंचाई वाले सेक्शनों पर डिट्रेनमेंट वॉकवे, पोर्टेबल रेस्क्यू ब्रिज, और प्रशिक्षित ‘हाई-एंगल’ टीमों की नजदीकी तैनाती प्रतिक्रिया समय घटा सकती है। खिड़कियां तोड़ने की कोशिश बताती है कि डिब्बों में इमरजेंसी हैमर और स्पष्ट निर्देश यात्रियों तक नहीं पहुंचे।
पांचवां, पावर सप्लाई आर्किटेक्चर। एकल-स्रोत निर्भरता या सिंगल पॉइंट ऑफ फेलियर भारी भीड़ और बारिश में सबसे पहले उजागर होते हैं। रिंग-फीड, सेक्शनलाइज्ड सप्लाई और संवेदनशील कर्व-सेक्शनों पर अतिरिक्त रेडंडेंसी जोखिम घटाते हैं। साथ ही, ट्रैक्शन सिस्टम की प्रोटेक्शन सेटिंग्स (ओवरकरंट/अंडरवोल्टेज) को भीड़भाड़ परिदृश्यों के लिए रीकैलिब्रेट करना जरूरी है ताकि सुरक्षा बनी रहे और ट्रिपिंग अनावश्यक रूप से बार-बार न हो।
छठा, मौसम के बदलते पैटर्न। मुंबई में क्लाउडबर्स्ट जैसे इवेंट ज्यादा बार और ज्यादा तीव्र हो रहे हैं। इसका मतलब है कि ‘डिजाइन डे’ की परिभाषा बदलनी पड़ेगी—ड्रेनज, पावर रूम की वॉटरप्रूफिंग, सिग्नल केबलिंग की सीलिंग, और सबस्टेशन की लोकेशन अब पुराने मानकों पर नहीं चल सकती। हर साल प्री-मानसून ऑडिट में रेन-स्टॉर्म ड्रिल जोड़ना होगा, सिर्फ पेड़ काट-छांट भर काफी नहीं।
जांच अब क्या देखेगी? प्राथमिक रूप से ये बिंदु तय हैं:
- ओवरलोडिंग की सटीक सीमा कब और कैसे पार हुई—स्टेशन लॉग, सीसीटीवी, ट्रेन डेटा रिकॉर्डर से मिलान
- क्या दरवाजों/लोड सेंसर ने चेतावनी दी और उसे कैसे हैंडल किया गया
- पावर फेलियर के कारण—ओवरड्रॉ, शॉर्ट, या प्रोटेक्टिव ट्रिप; और क्या बैकअप सप्लाई समय पर कट-इन हुई
- इमरजेंसी वेंटिलेशन/लाइटिंग की बैटरी हेल्थ और मेंटेनेंस रिकॉर्ड
- रेस्क्यू रिस्पॉन्स टाइमलाइन—पहला कॉल, टीम डिस्पैच, साइट पर पहुंच, पहले यात्री की निकासी, फाइनल क्लोजिंग
जिम्मेदारी किसकी? ऑपरेशंस और मेंटेनेंस ऑपरेटर, स्टेशन मैनेजमेंट, और सिस्टम ओईएम—तीनों की भूमिका की जांच होगी। मुख्यमंत्री ने व्यापक जांच का आश्वासन दिया है; एक समयबद्ध रिपोर्ट और सुधारों की सार्वजनिक सूची भरोसा बहाल करेगी।
यात्रियों के लिए क्या सीख? जब ट्रेन अचानक रुक जाए तो शांत रहें, दरवाजों को खुद से न छेड़ें, इमरजेंसी इंटरकॉम/अलार्म का उपयोग करें, बैटरी बचाने के लिए फोन की ब्राइटनेस और डेटा बंद रखें, पानी साथ हो तो कम-घूंट लेते रहें, और स्टाफ के निर्देश का इंतजार करें। खिड़की तोड़ना आखिरी विकल्प है—पहले वेंट पैनल और इमरजेंसी हैमर के निर्देश देखें। बीएमसी की 1916 हेल्पलाइन और ऑपरेटर का हेल्पडेस्क नंबर फोन में सेव रखें।
एजेंसियों के लिए रोडमैप भी साफ है—स्टेशन-वार ‘लाइव लोड’ डिस्प्ले, ओवरलोड लॉकआउट का सख्त पालन, भीड़ बढ़ते ही ब्रिज बसों का ऑटो-ट्रिगर, प्लेटफॉर्म पर माइक्रो-एनाउंसमेंट्स, और सोशल मीडिया/ऐप्स से वास्तविक समय की जानकारी। फील्ड में, हर 3–4 किलोमीटर पर रेस्क्यू किट और हाई-एंगल टीम की प्री-पोजिशनिंग; डिब्बों में बेहतर वेंटिंग और अधिक समय तक चलने वाले बैकअप।
इस घटना ने फिर याद दिलाया कि शहर की मोबिलिटी चेन उतनी ही मजबूत है जितनी उसकी सबसे कमजोर कड़ी। बारिश ने लोकल ट्रेनें रोकीं तो भीड़ मोनोरेल पर टूट पड़ी, और एक तकनीकी चूक ने सब कुछ थाम दिया। अच्छी खबर यह रही कि तीन घंटे की जद्दोजहद के बाद हर यात्री सुरक्षित नीचे आ गया। अब असली कसौटी यह है कि जांच सिर्फ जिम्मेदारी तय न करे, बल्कि वह सुधार भी जमीन पर उतारे जो अगली मूसलाधार बारिश में इस तरह का ‘कास्केड फेलियर’ दोहरने न दें।
bhargav moparthi
मैं भारतीय समाचारों का एक अनुभवी लेखक और विश्लेषक हूं। मैं उदयपुर में रहता हूँ और वर्तमान में एक प्रसिद्ध समाचार पत्रिका के लिए कार्यरत हूं। मेरा विशेष क्षेत्र राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं। मैं समाचार विश्लेषण प्रदान करने में माहिर हूँ और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने में आनंद आता है।
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